Sunday, October 6, 2013

अब नहीं बदलता मौसम मेरे घर का..

मेरे आंगन में अब बादल नहीं गरजते,
जिन्हें सुनके तुम डर जाया करती थी..
मेरी गली में उड़ती धूल भी अब थम गई है,
जो तुम्हारे पावो को मैला कर दिया करती थी..
मेरी छत पे अब पंछी नहीं आते,
जो सबेरे-सबेरे तुम्हारी नीन्द तोड़,
तुम्हें चिढ़ाते हुये उड़ जाते थे..
सर्दियों में ठंढी हवा के झोंके
अब मेरे घर में नहीं आते,
जो तुम्हारे सफेद गालों को लाल कर जाया करते थे..
मेरे कमरे में अब गर्मी की दोपहर भी नहीं आती,
जो तुम्हारी कमर पे पड़ी पासीने की बूँदों से मेरी नज़र नहीं हटने देती थी..
मुझे खाने में अब मिर्ची तेज़ नहीं लगती,
जिससे मेरी आँखों में आँसू तो आते थे
पर वो बहते तुम्हारी आँखों से थे..
या....हो सकता है, ये सब होता भी हो..
अब तुम जो नहीं, तो ये बातें मुझे पता ही नहीं चलतीं !!

Sunday, September 15, 2013

एक मुलाकात रात से

चल आज 'रात' से मिलकर आते हैं
कुछ अपनी कहकर आते हैं
कुछ उसकी सुनकर आते हैं
दिन की रोशनी से कई राज़ छुपाये हैं
वो राज़ उसे बतलाकर आते हैं
रस्ते में 'शाम ' मिलेगी
वो रोकेगी , कुछ टोकेगी
बातों - बातों में वो पूछेगी
हर राज़ के पन्ने पलटेगी.....
माथे की शिकन में छिपा लेंगे वो राज़
चेहरे की झुर्रियों के बीच गुमा देंगे वो राज़
हथेलियों के लिफाफों में बंद कर देंगे वो राज़
जल्द ही विदा ले ' शाम ' से , आगे बढ़ना है
आज की इस मुलाकात में मुझे बहुत कुछ कहना है !!

एक शहर

मेरे जिस्म में एक शहर सा बसा है
 इस शहर में तन्हाई की हवा चलती है
यहाँ मायूसियों के डेरे हैं
आँसुओं के झरने हैं
सन्नाटे मेले हैं
यहाँ यादों की कई हवेलियाँ हैं ,
जिनपे उदासियों की सफेदी पुती हुई है …
कई 'अपने' जो मेरे विचारों की बस पकड़ कर
मेरे दिमाग से दिल तक आते हैं।
बीच में वो मेरे दिमाग की अक्लमंदी के स्टेशन पे रुकते भी हैं
पर मेरे दिल की बेवकूफियों की हरी झंडी उन्हें जल्द ही मिल जाती है।
दिल के  आँगन में मेरे सोये हुये अरमानों की बनी कुर्सियों पे बैठ ,
चाय की चुस्कियों संग वो 'अपने ' बीते लम्हों पे जमी गर्त हटाते हैं..
उन लम्हों में एक तपिश सी है ,
जो उस गर्त में महफूज़ है।
न जाने क्यों सब छेड़ जाते हैं उसे
और मेरे चेहरे पे उस तपिश की जलन छोड़ जाते हैं
इस शहर की आब - ओ - हवा ही कुछ ऐसी है
कि यहाँ कई ऐसे 'अपने ' आते हैं
जो जाते - जाते मुझे पुराने दर्द तौफ़े में दे जाते हैं !!

Wednesday, September 11, 2013

मुझे मुझको देदो

मुझे कुछ सादे पन्ने देदो
जिन्हें मैं वो सुना सकूँ जो मैंने हमेंशा कहना चाहा..
मुझे थोड़ा सा आकाश देदो
जिसे देख मैं उड़ने की उम्मीद कभी न मारूं..
मुझे कुछ रातें देदो
जिनके अँधेरे में मैं खुद को एक बार देखने की हिम्मत कर सकूँ
मुझे घर का एक खाली कोना देदो
जहाँ मैं खुद से पूछ सकूँ कि मैं , मैं ही हूँ
 या वो हो गई हूँ , जो ये दुनिया मुझे बनाना चाहती है
मुझे एक बार किसी मंदिर में जाने को देदो
ताकि मैं उस विधाता से पूछ सकूँ कि विधाता अगर वो है,
तो उसने एक औरत का विधाता बनने का अधिकार औरों को क्यों दे दिया
मुझे मेरी ही ज़िन्दगी की कुछ घड़ियाँ दे दो ,
कि  उन्हें मैंने किस तरह खर्च किया ,
इसका मुझे किसी को हिसाब न देना पड़े
कुछ पल के लिये ही सही , मुझे मुझको देदो !!

Monday, September 9, 2013

एक बार चलो संग मेरे

 एक बार चलो संग मेरे ,
मिलाना है तुमको किसी से ..
पर एक बात मानना मेरी ….
अपनी आँखों में काजल लगा के न आना
उसे दिखाऊंगा तेरी आँखों की ये सूजन ..
अपनी ओढ़नी कहीं राह में ही छोड़ देना ..
उसे दिखाऊंगा तेरा ये पीला पड़ता सफ़ेद रंग ..
सुनो !! हो सके तो रात में आना ,
क्योंकि , मैं जानता हूँ , दिन की रोशनी में
तुम उसे अपने होठों को छूने न दोगी
और मुस्कान फिर तुमसे रूठ के चली जायेगी।
बड़ी मिन्नतों के बाद वो मानी है तुमसे मिलने को..
कसम है तुम्हे मेरी , इस बार मना न करना !!

Thursday, August 29, 2013

तुम कभी मेरी जुबां पर न आ जाओ

तुम्हें कागज़ के पन्नों में समेटने की कोशिश है
कलम की स्याही में छुपाने का अरमान है तुमको

इन शब्दों के जाल में तुमको छुपाना है
यादों के घर में तुम्हें रखेंगे कहीं
लेकिन डर है कि कहीं तुम कोई अलफ़ाज़ बनके
मेरी जुबां पे न आ जाओ !!



चुपचाप सी ये रात

रात के बसेरे को हटाती रोशनी की किरड़े …
अँधेरे की चुप्पी को तोड़ती हर ओर की ये चहचआहट …
रह रह कर कह रहे थे मेरे कुछ ठहरते से कदम …
कि मैं रात की इस खामोश हार में शामिल हो जाऊं ,
या दिन के विजय - आगमन का स्वागत करूँ !!


Wednesday, August 21, 2013

जब मिले तुम

स्वप्न - देश में मिले थे तुम
जब छूकर देखा तो बिखर गये
मेरे सपनों का वहम - जाल थे
या ताश का खड़ा मकान थे….

Monday, August 19, 2013

थक गई हूँ मैं

कहीं कोई साहिल नहीं ,
कोई मंज़िल नहीं अब मेरी
कोई अंत नहीं इस राह का
कोई सुबह नहीं इस रात की
पूछते हैं पैर मेरे, कि कौन सा होगा आखरी क़दम.…
कैसे कहूँ, कि एक बहरी डगर पर चल पड़ी हूँ मैं,
जो ये सुनती ही नहीं कि अब थक गई हूँ मैं !!

Wednesday, August 14, 2013

विडम्बना

लक्ष्य है लक्ष्यहीन सा
द्रश्य है अद्रश्य सा
पंख हैं कटे हुये
उड़ान है थमी हुई
वक्त है रुका हुआ
हर मार्ग अवरुद्ध है
मगर, अश्रु निर्बाध्य हैं
अंत गतिशील है
विडम्बना अजीब है
तू ही तो कर्डधार था,
जो आज विनाश - रूप है !  

Saturday, August 3, 2013

हम रहें न रहें

कल हम रहें न रहें पर हम होंगे….  
कल मेरे कुछ शब्द किसी की भाषा में होंगे
कल मेरे कुछ सपने किसी की आँखों में होंगे
कल मेरे पंख किसी की उड़ान के साथी होंगे
कल हम किसी की मंजिल की एक ईंट होंगे …
हम साहिल के परिचित नहीं ,
हम तो लहरों के साथी हैं
हम मंजिल को तरसे नहीं ,
हम तो रास्तों के मुसाफिर हैं….
कल हम रहें न रहें पर हम होंगे !!


Sunday, July 28, 2013

दिल एक सादा कागज़ - राही मासूम रज़ा

 दिल एक कागज़ है, जिसपर हमारी अभिव्यक्ति के हर रंग को उड़ेलने की आज़ादी है हमें। ये एक आइना है जो हमें हमारे भूत और वर्तमान का वो चेहरा भी हमें दिखा देता है जो हम औरों को दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाते। ऐसे ही राही मासूम रज़ा के इस उपन्यास " दिल एक सादा कागज़ " का एक चरित्र जिसका नाम कभी रफ़्फ़न, कभी सय्यद अली, कभी रफ़्अत  अली तो कभी बागी आज़मी है, जो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के त्रिकोड़ में घूमता है हालांकि वो भारत के बहार कभी नहीं गया लेकिन पाकिस्तान के निर्माड़ और बांग्लादेश की नवनिर्मित सुरक्षासीमाओं ने उसके दिल के सादे कागज़ पर बहुत कुछ लिखा। इन देशों के निर्माड़ के कारड़ परिवारजनों के स्थानान्तरड़ से रफ़्फ़न अपने घर 'जैदी विला' से दूर तो हो गया था पर उसके दिल का आइना जिन्दगी के हर मोड़ पर उसे 'जैदी विला' की झलक दिखाता रहता था. उसके पास कहने को बहुत कुछ था पर सुनने वाला कोई नहीं था, जो थी ( उसकी भाभी, उसके बचपन का प्यार, उसकी  'जन्नत आपा ' ) वो अपने शौहर यानि रफ़्फ़न के बड़े भाई के साथ पाकिस्तान जा चुकी थी. अब उसके दिल का सादा कागज़ ही था जिसपर वो अपने अनकहे शब्द लिख सकता था, जिन्हें कभी - कभी कहने की गुस्ताख़ी उसकी ज़बान कर ही देती थी और उसकी ज़बान की इन्ही हरकतों ने उसे शायर बना दिया था.
             इस नौजवान शायर पर हज़ारों लड़कियां मर मिटने को तैयार थीं और इनमे से एक थी, 'जन्नत'. ये वो जन्नत नहीं थी जो उम्र में उससे बड़ी थी, उसकी बाजी थी और उसकी भाभी थी और  वो उससे तबसे प्यार करता था जब वो प्यार के मायने भी नहीं जनता था बल्कि ये वो जन्नत थी जो उम्र में उससे छोटी थी, उससे बहुत प्यार करती थी और एक I. A. S. आफ़िसर की बेगम बनने वाली थी. इस नई जन्नत का निकाह मशहूर शायर बागी आज़मी से तो हुआ पर बाद में उसे ये  अहसास हुआ कि ये जैदी विला का रफ़्फ़न या मशहूर शायर बागी आज़मी नहीं बल्कि जिन्दगी के हालातों से जूझता एक मामूली स्कूल - टीचर है, जो बाद में अपने फन और हालातों की ज़रूरत में से किसी एक को चुनने की घड़ी में अपने फन को अलविदा कह फिल्मों की जगमगाती दुनिया में कहीं खो जाता है.
           रफ़्फ़न की जिंदगी में कई औरतें आईं पर उसकी ज़िन्दगी में दो ही जन्नत हैं एक वो जिसपर वो मर मिटा था और एक वो जो उसपर मर मिटी थी. राही मासूम रज़ा ने बड़ी संजीदगी से रफ़्फ़न के दिल के सादे कागज़ पर रिश्ते, प्यार, राजनीती, समाज और ज़रूरत, इन कई भाषाओँ के शब्दों को एक ही भाषा के शब्दों में लिख उस सादे कागज़ पर हर एक आम आदमी की झलक दिखाई है.     

Sunday, May 19, 2013

मैं मुझ सी नहीं

मैं मुझ सी नहीं , मैं सब सी नहीं 
मैं हूँ ही नहीं , या दिखती नहीं 
एक डाल का टूटा पत्ता हूँ या सागर से बिछड़ी लहर हूँ मैं 
कागज़ की नाव हूँ या टूटी सी पतवार हूँ मैं ....
समय - भंवर में उलझी हूँ और अपनों से ही बिछड़ी हूँ 
ख़ोज रही हूँ कुछ, इस समय - काल की पर्तों में ..
ख़फा हूँ मैं सबसे या ख़फा है जग मुझसे ..
कोई भूल नहीं एक पहल हूँ मैं 
जीवन के पर्याय बदलने को अटल हूँ मैं 
रुक जाऊं नहीं, थम जाऊं नहीं
सही गलत के फेरों में पड़ जाऊं नहीं 
धूल में उड़ता एक तिनका हूँ  
मुरझाई सी डाली की नई कोपल हूँ मैं 
ढूंढ़ रही हूँ कुछ जवाब 
ढूंढ़ रही हूँ कई बातों के सच ..
एक नई सुबह से मिलना है 
हर बात का मतलब सुनना है 
अब कल्पनाओं और कविताओं में नहीं ,
हकीकत में कहीं एक बार रूबरू होना है !!

Saturday, May 4, 2013

who..you or me

when you are stranger,
you seem to be interesting
when you are known,
you sound common
when you are my closed one,
you are being judged by my intelligence
when you become a soul of mine,
I get bore of you....
It is me, who can't sustain too much of you,
or it is you, whom 'too much' is unbearable for me !!

Friday, April 19, 2013

lyrics

तेरा वो, उँगली पकड़ के चलना
तेरा वो, बाहों में मुझको भरना
तेरा वो, मेरे कुछ न बोले भी सबकुछ समझना
oh ho ho ho ho
oh mother, you are great
oh mother, you are my world
याद है मुझे अब भी ..
वो स्कूल का पहला दिन , पहला boards exam,
पहला इंटरव्यू , वो पहला बोनस और पहला promotion ..
मेरी खुशियों में दोस्त बनी तुम,
और मुश्किलों में साथी ....
oh ho ho ho ho
oh mother, you are great
oh mother, you are my world
उम्र की सीढ़ी ने मुझे तेरी उंगली से तेरे कन्धे तक पहुँचाया,
इस सीढ़ी के हर कदम पर तू हमकदम थी मेरी माँ ,
मैं हर पल ये चाहूँ , कुछ तो कर पाऊं मैं भी तेरी खातिर माँ ..
oh ho ho ho ho
oh mother, you are great
oh mother, you are my world.

Monday, March 25, 2013

o mother, you are great

तेरा वो उँगली पकड़ के चलना
तेरा वो बाहों में मुझको भरना
तेरा वो लोरी गाके सुलाना
o mother, you are great
o mother, you are my love
पलकों में सपने ,
कदमों में हौसले ,
सिखाया तुमने मंज़िल को पाना
राहों में बढ़ना ,
गिरके संभलना ....तुमने सिखाया
o mother , you are great
o mother, you are my love
 सपनों की डोरी से सच की हथेली पे
तुमने पहुचाया ,
मुश्किल घड़ी में साथ बनी तुम ,
पर अपनी जरुरत पे ,
मुझे कभी भी न बुलाया
o mother, you are great
o mother, you are my love..

Monday, March 11, 2013

मिले थे जब तुमसे

हम मिले थे जब तुमसे
एक बार जिया था बचपन फिर से
एक बार तोड़े थे नियम बिना डर के
एक बार कहे थे दिल के सब अरमान
एक बार घर की इज्जत के लिफ़ाफे से हौले से निकल,
टहल आये थे दुनिया की बदनाम गलियों में
एक बार सोये सपनों का माथा धीरे से थपथपा ,
उन्हें फिर से जगाने की कोशिश की थी
एक बार ढलके हुये आँचल को सरक जाने दिया था ,
और बहती हवा की ओढनी ओढ़ी थी
एक बार पाँव की पाज़ेब निकाल ,
किसी को खुद के आने की भनक न होने दी थी
हम मिले थे जब तुमसे ,
एक बार फिर , इन साँसों को मेरे जिस्म में आने की
वजह याद आई थी !!

Thursday, February 28, 2013

Religious role of Lord Shiva


 Sanskrit word Shiva is the meaning of pure and destroyer. Shiva is creator, preserver and destroyer. The positive side of this destruction leads to new forms of existence. Shiva is the God of ambiguity and paradox. Shaivism is very widespread belief. Not only Indians but the people of Nepal, Sri lanka, Southeast Asia especially Singapore and Indonesia also believe on the power of Lord Shiva. Shiva is the God, who gave equality to woman. The half part of his body is woman. It represents that this universe is made of both man and woman. The moon on the head of Shiva indicates that he has controlled the mind. Shiva smears ashes on his body. This ash is the symbol of the end of all material existence. Tiger represents lust and Shiva sits on the tiger’s skin to conquer lust. Serpents of his neck denotes wisdom and eternity. Deer in his one hand is the symbol of maturity and firmness in thought process. His trident denotes Sattva, Rajas and Tamas. Trident is an emblem of sovereignty. Nandi represents that Lord Shiva is the protector of Dharma. Shiva is an embodiment of Dharma and righteousness. Shiva is not only idle he is an example in front of all human being to overcome our bad habits and fear of our heart. The religion, which belongs to Shiva teaches us to give people as much as you can do not expect anything for yourself. If you really want to have something for yourself then take pain and sorrow of the world.

Tuesday, February 26, 2013

 
अपनी आँखों की कालिख से ढकी हो तुम 
इस कालिख में छिपा तेरा कोरा अंग 
इस कालिख से ढका तेरा सतरंगी मन 
ये कालिख जिसपे किसी रंग की छटा नहीं खिलती 
ये कालिख जिसपे कोई रस्म नहीं सजती 
ये कालिख जिसकी खातिर कोई नज़्म नहीं बनती 
इस कालिख से छन के आती तेरे अंगों की रोशनी 
भी चुपचाप सी है तुम्हारी ही तरह  ..
तुमने इसे अपनी आँखों में सजाया ,
इसमें खुद को छिपाया ....
ढक कर तुम्हें इसने तेरा मान बचाया 
या तुमने ख़ुद पे देकर जगह इसे इसका मान बढ़ाया ..
मैंने कई बार पूछना चाहा तुमसे ये सवाल 
पर तुम्हारी आँखों ने कुछ भी कहने से हर बार इन्कार किया !!

Friday, February 22, 2013

first draft of the story for a serial

दो अलग - अलग रास्तों के मिलने की कहानी है ये। पानी की दो धारें , एक मीठे पानी की , एक खारे पानी की , इन दो धारों के मिलन की कहानी है ये।
दो ऐसे लोग जो साथ चलकर भी साथ न चले और जुदा रह कर भी जुदा न हुये। तकदीर नाम के मांझी ने नदी के इन दो साहिलों का मिलन कराया। वक्त से तेज़ दौड़ने की होड़ में थे ये। आकाश से भी ऊँची इनकी मंजिलें थीं। आधुनिकता की होड़ में सबसे आगे थे ये। देश , हिंदुस्तान पर सभ्यता पाश्चात्य , जड़ें नवाबों और तहज़ीब के शहर लखनऊ की पर शाखाएं इंगलिस्तान में। उनकी जड़ों के असर ने उन्हें मिलाया पर उनकी बौद्धिक दक्षता ने उन्हें मिलके भी न मिलने दिया। वो जीते या हारे इस विषय में मतभेद है। किसी के अनुसार वे जीते क्योंकि उन्होंने वो किया जो सोचा , वो पाया जो चाहा। सबकी मरजी का करते हुए भी अपने मन की कर ली और उन दोनों के सिवाय किसी को पता भी न चला। और कुछ लोग कहते हैं कि वो दोनों इस दंभ में जरूर हैं कि उन्होंने जो चाहा वो पाया इसलिये वो जीत गए लेकिन यह सर्वथा सत्य है कि ' अति सर्वत्र वर्ज्यते ' अतः उन दोनों के आधुनिकता के प्रति अत्यधिक आकर्शड  , जिन्दगी में कुछ बनने की अत्यधिक लालसा में सामाजिक परम्पराओं और मान्यताओं का बहिष्कार उन्हें जिताकर भी हरा देता है।
रोहित और संजना ये दो ऐसे ही लोग हैं , जिनकी कहानी आपको दिलचस्प जरूर लगेगी लेकिन ज़रा अपने आस - पास नज़र घुमा के देखिये आपको अनगिनत ऐसे रोहित और संजना मिलेंगे , जिन्हें जिन्दगी में कुछ करना है , कुछ बनना है। ये छोटे शहर के हैं पर इनकी मंज़िलें बहुत बड़ी हैं। इनकी प्रारम्भिक पढाई साधारड़ से स्कूलों से हुई  पर आगे की पढाई इन्होंने देश के बेहतरीन Institutes से की , जहाँ इन्हें इनके पिताजी के पैसे से नहीं बल्कि इनकी मेहनत और काबिलियत के दम पर दाखिला मिला। जीवन का शुरुआती दौर साधारड़ परिवेश में गुजरा पर आगे का जीवन साधारड़ से असाधारड़ परिवेश जहाँ पहुँचने का सपना देखने से पहले भी हम एक पल को ठिठकते हैं , वहाँ तक वो अपनी मेहनत , लगन और काबिलियत से पहुँचे। लेकिन इस सफ़र में कुछ चीजें ऐसी भी थीं , जिनकी पकड़ उनके हाथों से छूट गई और कुछ की पकड़ कमज़ोर हो गई। उन्होंने आधुनिकता के समन्दर में कुछ इस कदर गोता लगाया कि सामाजिक परम्परायें और पारिवारिक मान्यतायें धता सा बताने लग गईं। इन्टरनेट के प्रभाव ने जहाँ बात - चीत अत्यधिक सुलभ और आसान कर दी वहीँ चिट्ठी के शब्दों की स्याही में छिपे प्यार और अपनेपन को भी सुखा दिया। Barista  और CCD में डेटिंग बढ़ी पर मिलने के इंतज़ार का मज़ा कहीं मर सा गया। टेलीफोन P.C.O. पर घण्टों लाइन में खड़े होकर मंहगी S.T.D. काल पर कुछ मिनट के लिए ही बात कर पाने से मिलने वाली ख़ुशी रात - रात भर मोबाइल से बात करने की सुविधा कभी नहीं दे सकती। उनके जीवन में एक ही दुःख था कि उनकी जड़ें पारम्परिक थीं। उनकी हर सफलता का स्वागत उनके घर में नारियल फोड़ कर किया जाता अर्थात उनके परिवार ने उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की अनुमति जरूर दी थी परन्तु पारिवारिक और सामाजिक मान्यताओं से सम्बन्ध ख़त्म कर लेने के सख्त खिलाफ थे। उन्हें जब ये लगा कि उनके बच्चे जीवन में आगे बढ़ने की होड़ में सभ्यता और संस्कार की कई सीढ़ियाँ लांघ चुके हैं तब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि अब उनके बच्चों को एक ऐसे जीवनसाथी की जरूरत है जो कदम - दर - कदम उनका साथ दे और साथ ही उनकी जड़ों से बढ़ते उनके फासलों  को भी कम करे।
दोनों के घरों में उनके लिये सुयोग्य जीवनसाथी ढूंढे जाने लगे जो कि उनकी और परिवारजनों की अपेक्षाओं पर खरा उतर सकें पर ऐसा 'mister perfect' और 'miss perfect' मिल पाने बेहद मुश्किल थे जो कि 'modern yet traditional' को चरितार्थ कर सकें।
और फिर फाइनली दोनों की शादी हो गई। ये कोई love marriage नहीं है। ये दोनों अपनी शादी को scam marriage कहते हैं। पर ये एक contract marriage है। ये दोनों facebook पे मिले थे। एक दिन रोहित ने संजना को FB पे friend request भेजी जिसे अगले दिन सुबह संजना ने accept कर ली। फिर 2 साल बीत गये वो दोनों एक दूसरे की friends list में एक passive friend की तरह थे यानि की न कभी उन्होंने एक दूसरे के status या photo को like या  comment किया था और न ही कभी chat की थी। फिर एक दिन संजना ने एक कविता facebook wall पे अपलोड की और रोहित ने तुरंत ही उसे like कर लिया। संजना ने देखा कि रोहित online है तो उसने रोहित को thanks लिखकर भेज दिया। बस इस तरह दोनों की बातों का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने chat के द्वारा एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जाना। 8वें दिन रोहित ने संजना को अपना फ़ोन नम्बर msg किया और कहा कि वो एक project के सिलसिले में कुछ दिनों के लिये बेहद बिजी होगा और online नहीं मिल सकेगा। अगले दिन एक पूरा दिन वो दोनों sms से बात करते रहे। उसके अगले दिन रोहित ने पहली बार संजना को फ़ोन किया। हालांकि , रोहित ने अपने काम के बीच से बड़ी मुश्किल से वक्त निकाला था संजना से बात करने के लिये और उस वक्त संजना भी व्यस्त थी। उसे एक project पूरा करने के लिये केवल उस रात भर का वक्त था लेकिन फिरभी उन दोनों की वो पहली कॉल 4 घंटे तक चली। अगले दिन सुबह सुबह रोहित ने फिर संजना को फ़ोन किया पर इस वक्त संजना की आवाज़ कुछ upset सी थी। रोहित के पूछने पर संजना ने बताया शाम को उसे देखने लड़के वाले आने वाले हैं। उसी रात रोहित ने sms से जानने की कोशिश की कि संजना का रिश्ता पक्का हुआ या नहीं पर संजना ने सीधे से कोई उत्तर न दिया और थके होने का बहाना करके उसने फ़ोन ऑफ कर दिया। पर रोहित को चैन नहीं आया वो रात भर सो नहीं सका वैसे बेचैन संजना भी थी , उसकी आँखों में भी नींद नहीं थी। रोहित ने सुबह साढ़े चार बजे संजना को फ़ोन किया और उससे पूछा की क्या वो उससे शादी करेगी। संजना को ये बात काफी अजीब लगी और उसने तुरंत मना कर दिया। वो दोनों अगले एक हफ्ते तक फ़ोन और sms के द्वारा एक दूसरे से झगड़ते रहे पर बात करते रहे और आखिरकार दोनों के बीच सुलह हो ही गई। आपको अब भी लग रहा होगा कि जब ये शादी दोनों की मर्ज़ी से हुई तो ये  love marriage है। इनकी शादी इनकी मर्ज़ी से ज़रूर हुई पर इनका रिश्ता इनके दिल की गलियों से होकर नहीं बल्कि इनके दिमाग की पंचायत का फैसला था। उन्होंने एक दूसरे से एडमिट किया कि उन्हें एक दूसरे से प्यार या affection नहीं है। मगर जिस तरह का उनका life style है , उन दोनों के सिवाय कोई और उनके साथ न तो सुकून से जीवन व्यतीत कर सकता है और न उन्हें ही चैन से रहने दे सकता है।
रोहित लखनऊ के old area के ब्राह्मण परिवार में army officer के दो बेटों में सबसे छोटा है। स्कूल की पढाई के बाद delhi  में उसका दाखिला इंजीनियरिंग के एक बहोत अच्छे institute में हो गया। इंजीनियरिंग के इन चार सालों ने जहाँ उसकी बौद्धिक दक्षता को बढाया वहीँ उसे शराब और कई और विसंगतियों का आदी भी बना दिया। लड़कियों की इज्ज़त वो कभी नहीं करता था। लड़कियां उसके लिये 'source of intertainment' मात्र थीं। उसने अपने जीवन में मात्र दो चीजों से प्यार किया था ,एक 'career' और दूसरा उसकी 'bike'. इंजीनियरिंग के आखरी सेमेस्टर में उसका प्लेसमेंट इंस्टिट्यूट की placement list में सबसे ऊपर था पर घर वालों की उम्मीदों को तोड़ते हुए उसने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अपना music band बनाया और साल में कम - से - कम 8 महीने bike से घूमता था। सालों बीत चुके थे उसके , उसके बड़े भाई , भाभी और पापा से बात किये हुए। वो सिर्फ माँ से बात करता था, वो भी उसकी माँ ही हमेशा उसे फ़ोन करती थी। उसे नहीं याद कि आज तक उसने कभी किसी को भी birthday या कोई aniversary wish की होगी। वो कितनी भी कोशिश कर ले पर ये याद करके नहीं बता सकता कि उसने जीवन में कभी भी किसी की कोई छोटी सी भी मदद की हो। वो handsome है , cute है , charming है पर imotionless है , arrogant है। उसकी जिन्दगी में बहुत सारी लडकियाँ आईं पर एक भी टिकी नहीं क्योंकि उसकी rudness को बरदाश्त कर पाना किसी भी लड़की के लिये आसान नहीं था।
संजना के facebook wall पे लिखी वो कविता , जिसे पढ़ के उसे समझ में नहीं आया कि वो अपनी जिंदगी में आई ढेरों लड़कियों में से किसको याद करे। उसे खुद की हालत पे हँसी भी आई और उसने उस कविता को like कर लिया. धीरे - धीरे उन दोनों में chat का सिलसिला शुरू हुआ जिससे उसे पता चला की वो उसी के इंजीनियरिंग कॉलेज से pasout है और लखनऊ की  ही रहने वाली है। chat और फ़ोन के सिलसिले ने उसे ये अहसास कराया कि संजना उसी का female version है अर्थात बहुत कुछ उसी के जैसी और जितनी वो उसके जैसी नहीं थी वो हिस्सा हुबहू उसकी उम्मीदों से मेल खाता था। फिर क्या था ! एक दिन रोहित ने संजना को शादी के लिये propose कर दिया। संजना के लिये ये कोई नई बात नहीं थी। उसकी जिन्दगी में आने वाले हर लड़के ने देर - सबेर उसे propose जरूर किया था। संजना का कुछ ही महीने पहले ही उसके बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप हुआ था , जो उसने ही किया था। इसकी वजह थी कि जब वो इंजीनियरिंग कर रही तब तक तो ये रिलेशनशिप comfertable था क्योंकि वो भी उसी इंस्टिट्यूट में था। पढाई पूरी होने के बाद संजना नई जॉब ज्वाइन करके मुम्बई शिफ्ट हो गई। अब long distance relationship उसे बहुत time consuming लगने लगा क्योंकि घंटो फ़ोन पे बातें, जब सोहम संजना से मिलने आये तब पूरे दिन की ऑफिस से छुट्टी, सोहम से मिलने के लिये kolkata जाना , उसकी fast track लाइफ में फिट नहीं बैठ रहे थे। जब वो convocation के लिये delhi गई तो एक शानदार पार्टी के साथ उसने अपनी जिन्दगी से सोहम को अलविदा कह दिया।
रोहित और संजना इन दोनों के घरों में इनके लिए सुयोग्य जीवनसाथी ढूंढे जाने की मुहिम शुरू हो चुकी थी। और इस बात को लेकर दोनों के ही अपने - अपने घरवालों से झगड़े और बहस बढ़ते जा रहे थे क्योंकि घरवालों की पसंद का जीवनसाथी उनकी जिन्दगी में फिट बैठना असम्भव था और इनकी पसंद का जीवनसाथी एक तो मिलना मुश्किल था और अगर मिल भी जाए तो परिवार द्वारा स्वीकार किया जाना असम्भव था।
संजना के पापा की first priority थी कि लड़का नॉन वेज न खाता हो और शराब न पीता हो , वहीँ संजना का एक भी दिन बिना नॉन वेज खाये और vodka पिये नहीं बीतता था हाँ पर उसके घरवालों को ये बात नहीं पता थी। संजना को न तो कोई घर का काम आता था और न ही उसे कोई रूचि भी थी। और सबसे अहम् बात जिसकी वजह से वो शादी नहीं करना चाहती थी वो ये कि उसके अनुसार बच्चे एक औरत की निजी जिन्दगी और उसके करियर में बहुत बड़ी बाधा हैं। देर रात तक दोस्तों के साथ घूमना, bike racing , फ़्लर्ट शादी के बाद सब ख़त्म। उसे तो ये सोच के जैसे जिन्दगी ख़त्म हो जाने जैसा डर लगता था। वो 4 बहनों में सबसे छोटी थी और सबसे खूबसूरत और सबसे अधिक प्रतिभाशाली भी। क्लास में नम्बर अच्छे आते थे तो उसकी जायज़ - नाजायज़ सभी मांगे पूरी की जातीं। संजना जिस मिट्टी की थी उसे उसी मिट्टी की खुशबू पसन्द नहीं थी। आगे बढ़ने की होड़ में वो अपनी जड़ों को इतनी पीछे छोड़ बैठी थी कि अब उसे एक हफ्ता भी लखनऊ आकार परिवार के साथ गुज़ारना मुश्किल होता था. सुबह आरती के लिए घर में बजती घंटियों से उसकी नींद खराब होती थी। घर का शाकाहारी खाना उसे घास - फूस लगता था। खाने के वक्त मोबाइल पर बात न करने के पापा के नियम उसे तानाशाही लगते थे। मोहल्ले में हाल चाल पूछने वाली आंटियां उसे चिपकू लगती थीं। रिश्तेदार सरदर्द लगते थे। लखनऊ की चिकनकारी के लिये दुनियाभर में मशहूर कुर्ते उसे old फैशन लगते थे। घर में बजते हिन्दी पुराने फ़िल्मी गानों को वो भजन कहकर मज़ाक उड़ाती थी। वो पढ़ाई में हमेशा ही बहुत अच्छी रही थी और करियर में अपनी उम्र के बाकी लोगों की अपेक्षा बहुत आगे थी और इस बात का श्रेय वो अपनी मेहनत और काबीलियत के अतिरिक्त पारिवारिक मान्यताओं और घर के नियम - कानूनों से दूरी को देती थी। जीवन के बहुत से ऊबड़ - खाबड़ रास्तों पर चली थी वो। ठोकर खाकर खुद सम्भली थी। आधुनिकता जहाँ उसका इन रास्तों पर सहारा बनी वहीँ उसकी बैसाखियाँ भी बन गई। रोहित ने जब उससे शादी की बात कही तब उसने वो बात वहीँ ख़त्म कर दी क्योंकि उस वक्त वो लखनऊ में अपने घर पर थी और उसी शाम उसे देखने लड़के वाले आने वाले थे। लड़के वालों ने संजना को पसन्द कर लिया और संजना के घरवालों को भी लड़का बहुत पसन्द आया। लड़का I.A.S. officer था जो कि U.P. के एक छोटे से जिले में पोस्टेड था। उसकी सफ़ेद शर्ट, काली पैन्ट और बालों में लगे तेल साइड की मांग के साथ चिपके बाल देखकर ही संजना ने मन ही मन उस लड़के को रिजेक्ट कर दिया था पर रिजेक्शन की ये वजह वो घर में नहीं कह सकती थी। लेकिन तकदीर ने संजना का पक्ष लिया और दहेज़ की बड़ी रकम को लेकर रिश्ता दो दिनों के भीतर ही टूट गया। रोहित और संजना की फ़ोन पर बात - चीत जारी थी। रोहित का  संजना को propose करने का तरीका भी बेहद अलग था। वो हर रोज़ संजना को ये बात क्लियर करता था कि उसे संजना से प्यार नहीं है वो संजना को फायदे गिनाता था कि अगर उन दोनों कि शादी होती है तो इससे दोनों को क्या - क्या फायदे होंगे। एक हफ्ते के भीतर ही संजना अपने माता - पिता के साथ बनारस गई , जहाँ उसे एक लड़के के परिवार से मिलाया गया। लड़के की माँ ने संजना से बात - चीत की। उन्होंने करीब ढाई घंटे तक संजना का इंटरव्यू लिया। संजना अपने पूरे जीवन में किसी भी स्कूल या कॉलेज के इंटरव्यू में या किसी नौकरी के इंटरव्यू में इतनी नर्वस नहीं हुई थी जितनी उस दिन हुई। उस दिन वो काफी देर रात अपने घर लखनऊ पहुंची। बेहद थके होने के बावजूद चन्द घंटों की बची रात में भी उसकी आँखों में ज़रा भी नींद नहीं थी। वो रात भर अपनी होने वाली सास के बारे में , उनके सवालों और उनकी उससे उम्मीदों के बारे में सोंचती रही और अपनेआप से ये पूछती रही कि क्या वो एक अच्छी बहू और एक अच्छी बीवी की कसौटी पर खरी उतर पायेगी। वैसे तो ये सवाल साधारड़  सा ही था , जिससे शादी के वक्त हर लड़की रूबरू होती है। संजना के लिए वैसे तो रिश्ता पिछले 2 सालों से ढूँढा जा रहा था पर ये पहली मर्तबा थी जब उसने इस सवाल को गंभीरता से लिया और खुद से ये पूछा कि क्या वो जीवन के हर कदम पर उस अजनबी की जरूरतों को अपनी जरूरतों से अधिक महत्व देगी , जिससे वो सात फेरे लेने वाली है। क्या वो हर बार अपनी इच्छाओं की क़ुरबानी उसके लिए दे पायेगी। क्या वो उन सभी रीति - रिवाज़ों और परम्पराओं को परिवार की ख़ुशी के लिए निभा पाएगी जिनका वो हमेशा से मज़ाक उड़ाती आई थी।क्या वो हमेशा अपनी मांग में लाल रंग लगा पाएगी ,जिसे वो अपनी माँ को ये कहकर चिढ़ाया करती थी कि ये बस एक रासायनिक केमिकल है और कुछ भी नहीं। बड़े - बड़े शो रूम में जो चीजें बिक चुकी होती हैं , उस शो रूम का मालिक उसपे लाल रंग से निशान बना देता है। औरतों की मांग का सिन्दूर उसे ऐसा ही लगता था।
सवाल तो सीधा सा और साधारड़ सा था पर संजना के पास इस सीधे से सवाल का कोई जवाब न था। संजना ने अपने जीवन में आए इस चैलेंज को स्वीकार किया और अगले दिन शाम को चाय की टेबिल पे सभी घर वालों के सामने इस रिश्ते के हाँ कर दी और हर पुरज़ोर कोशिश कर ली कि उसका रिश्ता पक्का हो जाने की ख़ुशी उसके चेहरे पर दिखाई दे पर ये मुमकिन न हो सका। चार दिन बाद ये रिश्ता इस बात पर टूटा कि लड़के वालों के अनुसार लड़की बेहद मॉडर्न है जबकि उन्हें एक घरेलू बहू चाहिए। दरअसल संजना को लगा कि जिससे उसकी एक महीने बाद शादी होने वाली है, उसकी उसने सिर्फ तस्वीर देखी है। उस लड़के को थोड़ा बहुत तो जानना ही चाहिए इसलिए उसने उसे फेसबुक पर फ्रेंड्स रिक्वेस्ट भेज दी और अगले ही दिन उसकी माँ का फ़ोन उसके घर आ गया कि आपकी बेटी ज़रा भी संस्कारी नहीं है. संजना पूरी तरह समझ चुकी थी कि वो इस परिवेश में फिट नहीं बैठेगी। उस रात संजना ने रोहित को फ़ोन किया और कहा कि वो उससे शादी करने के लिए राज़ी है और वो इस बात से भी सहमत है कि इस शादी से दोनों का फ़ायदा है तो क्यों न अपनी - अपनी बातें एक दूसरे के सामने स्पष्ट रूप से रख दी जाएँ। संजना ने रोहित के सामने कुछ शर्तें रखीं -
1. संजना के पापा ने matrimonial paper में रिश्ते का इश्तिहार दिया है , जिसकी details वो रोहित को दे देगी और उसके घर वालों को ये लगना चाहिये कि ये रिश्ता उसी इश्तिहार द्वारा हुआ।
2. शादी के बाद रोहित संजना के घरवालों के आगे एक अच्छा दामाद होने का हर संभव नाटक करेगा.
3. रोहित कभी भी संजना की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में कोई दखल नहीं देगा।
4. संजना रात को जितने भी बजे चाहे घर लौट सकती है , रोहित को कोई ऐतराज़ नहीं होगा।
5. वो सिर्फ दुनिया को दिखने के लिए पति - पत्नी होंगे। उनका एक फ्रेंड से ज्यादा कोई रिलेशनशिप नहीं होगा।
6.  संजना का शादी के बाद अगर कोई बॉय फ्रेंड होता है तो भी रोहित को इस बात से कोई आपत्ति नहीं होगी।
7. संजना काम के सिलसिले में या दोस्तों के साथ अगर कभी कुछ दिनों के लिए अगर शहर से बाहर जाना चाहे तो जा सकती है।
8. वो घर पर भी ड्रिंक और स्मोक कर सकती है।
9. उनके बच्चे नहीं होंगे और अगर इस बात से रोहित के घर वालों को टेंशन होती है तो घर में इस बात को सँभालने की जिम्मेदारी रोहित की होगी।
१0.संजना घर का और रसोई का कोई काम नहीं करेगी।
11. घर के खर्चों में दोनों 50 - 50 % कंट्रीब्यूट करेंगे।
रोहित ने ये सभी शर्तें मान लीं और उसने संजना के समक्ष अपनी शर्तें रखीं -
1. संजना को रोहित के घर लखनऊ में एक अच्छी बहू होने का नाटक करना होगा। वो उसकी माँ को कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी।
2. रोहित संजना की सभी शर्तें तब मानेगा जब वो उसके साथ रहने अहमदाबाद आ जाएगी। लखनऊ में संजना को रोहित के घरवालों के हिसाब से रहना होगा।
3. संजना रोहित के किसी काम में कोई टोका - टाकी नहीं करेगी।
4. रोहित जब चाहे जितने भी दिनों के लिए चाहे bike ride पे जा सकता है , संजना उसे नहीं रोकेगी।
5. रोहित के घरवालों से कभी रोहित की कोई शिकायत नहीं करेगी।
6. भविष्य में रोहित राजनीति में जाना चाहता है। हालाँकि रोहित के घरवाले इस बात के खिलाफ हैं पर संजना इसके लिए उसका हमेशा साथ देगी।
7. संजना को रोहित की ex , present या future की किसी भी गर्लफ्रेंड से कोई आपत्ति नहीं होगी।
संजना ने भी रोहित की शर्तें मान लीं। वो दोनों इस कदर फॉर्मल और प्रोफेशनल थे कि उन्होंने legal papers पर ये शर्तें मंज़ूर कीं।
दो  हफ़्तों के भीतर उनकी शादी हो गई। दोनों के परिवार खुश थे कि उन्हें उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप दामाद और बहू मिल गये। संजना की बड़ी बहनें इस बात से खुश थीं कि वो रिश्तेदारों के तानों से उकता गई थीं कि संजना लव मैरिज ही करेगी और वो भी बिरादरी के बाहर के किसी लड़के से। रोहित और संजना भी खुश थे कि अब उन्हें घरवालों की बातें भी नहीं सुननी पड़ेंगी और उनके जीवन में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आयेगा। उनकी इन शर्तों ने उन्हें जीवन में कई बार बहुत कुछ सोंचने पर मजबूर किया और इन दोनों के जीवन ने हम दर्शकों के मन में भी कई सवाल पैदा किये कि आखिर ये दोनों अपनी आज़ादी को लेकर इतने over possessive क्यों हो गये। और अगर इनकी ये शर्तें एक सामान्य जीवन के लिये इतनी ही आवश्यक हैं तो इन्हें हमारे बड़ों की रज़ामंदी और सामाजिक स्वीकृति क्यों नहीं मिल सकती। हमारी सामाजिक परम्पराएं अगर इतनी ही तकलीफदेय हैं तो अपने बच्चों का हमेशा भला सोंचने वाले माँ - बाप आखिर क्यों चाहते हैं कि उनके बच्चे इन परम्पराओं की परिधि को कभी पार न करें और जैसा कि हमारे माँ - बाप सोंचते हैं कि ये परम्परायें हमारे लिए हर प्रकार से हितकर हैं तो आखिर क्या वजह है कि आज की युवा पीढ़ी या तो सबसे बगावत करके या रोहित और संजना की तरह तरकीबों के चलते इन परम्पराओं की परिधि को लांघने की पुरज़ोर कोशिश में है। सामाजिक व पारिवारिक मान्यताओं और अत्यधिक आधुनिकीकरड़ के बीच की कश्मकश में जूझती आज की युवा पीढ़ी की कहानी है ये !!

Wednesday, January 30, 2013

अपने से लगते हैं ये सन्नाटे

सुबह की पहली धूप को टोकती हूँ मैं
पंछियों की चहचआहट को रोकती हूँ मैं
मुझे देखती नज़रों को मेरे आँचल से रोकती हूँ मैं
नन्हीं किलकारियों पर लगाये हैं पहरे मैंने
किसी के आने के इंतज़ार में मेरी चौखट पर
जलते हर दिये को बुझाया है मैंने ..
एक ऐसी कोठरी में हूँ जिसकी चाबी गुम गई है कहीं ..
न दरकार है किसी को उसे खोजने की
और न चाहत है हमें भी उसे ढूंढने की ..
अब तो इस अँधेरे से याराना सा लगता है अपना ..
तन्हाई भी अच्छी लगती है अब ..
ये मायूसियाँ सहेली लगती हैं
और ये सन्नाटे अपने से लगते हैं अब !!

रस्ते

 ये रस्ते ले जायें कहाँ, क्या पता
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ
ये रस्ते भी न जानें कि मेरी मंज़िल कहाँ
मैं ख़ुद भी न जानूँ कि मुझे जाना कहाँ ..
यूँ धूल उड़ाते चलना ..
गीली मिट्टी में पैरों का धंसना ..
रस्ते के पेड़ों से बातें करना ..
कभी रुकना , कभी थकना ..
कभी बीती डगर पे पैरों के निशान निहारना ..
कभी बाकी डगर को एकटक देखना ..
कभी लकड़ी की किरमिच से रस्ते की धूल पे अपना नाम लिखना ..
और कभी अपने ही पैरों से उसे मिटाना ..
कभी कहीं किनारे बैठ ,
थके हुए दिन की गोद में ऊंघाई लेते ढलते हुए सूरज को देखना ..
कभी सुबह - सवेरे ओस की बूंदों पर
बढ़ते मेरे क़दमों संग भोर के खिलखिलाते सूरज संग बतियाना ..
कभी किसी पेड़ की छाँव में बैठ ,
रस्ते के दोनों ओर के पेड़ों के धरती से छुप के ,
सबकी आँखों से बचकर आकाश की साक्षी में
उनके मिलन को देखना ..
और कभी इस रस्ते के दोनों ओर उनकी जुदाई महसूस करना ..
ये रस्ते जाते हैं कहाँ, नहीं पता
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ .... 

Wednesday, January 9, 2013

रह गये हो तुम मुझमें ही कहीं

कल रात अलविदा तो कह दिया तुम्हें
पर आज सुबह की धुंध में हो कहीं तुम .
वक्त की लकड़ियाँ तो जल गईं
पर कुछ यादें अभी भी सुलग रही हैं ,
उन सुलगती हुई यादों के धुएं में हो कहीं तुम .
तेरे संग जिये लम्हे राख बन चुके हैं .
वो रातें कोयला बन रही हैं अब .
हमारी मुलाकातों की आग बुझने लगी है
पर लग रहा है जैसे मैं ख़ुद जलने लगी हूँ अब .
अलविदा तो कह दिया पर मुझमें ही कहीं ठहर से गये हो तुम !!