Sunday, September 15, 2013

एक मुलाकात रात से

चल आज 'रात' से मिलकर आते हैं
कुछ अपनी कहकर आते हैं
कुछ उसकी सुनकर आते हैं
दिन की रोशनी से कई राज़ छुपाये हैं
वो राज़ उसे बतलाकर आते हैं
रस्ते में 'शाम ' मिलेगी
वो रोकेगी , कुछ टोकेगी
बातों - बातों में वो पूछेगी
हर राज़ के पन्ने पलटेगी.....
माथे की शिकन में छिपा लेंगे वो राज़
चेहरे की झुर्रियों के बीच गुमा देंगे वो राज़
हथेलियों के लिफाफों में बंद कर देंगे वो राज़
जल्द ही विदा ले ' शाम ' से , आगे बढ़ना है
आज की इस मुलाकात में मुझे बहुत कुछ कहना है !!

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