Wednesday, September 11, 2013

मुझे मुझको देदो

मुझे कुछ सादे पन्ने देदो
जिन्हें मैं वो सुना सकूँ जो मैंने हमेंशा कहना चाहा..
मुझे थोड़ा सा आकाश देदो
जिसे देख मैं उड़ने की उम्मीद कभी न मारूं..
मुझे कुछ रातें देदो
जिनके अँधेरे में मैं खुद को एक बार देखने की हिम्मत कर सकूँ
मुझे घर का एक खाली कोना देदो
जहाँ मैं खुद से पूछ सकूँ कि मैं , मैं ही हूँ
 या वो हो गई हूँ , जो ये दुनिया मुझे बनाना चाहती है
मुझे एक बार किसी मंदिर में जाने को देदो
ताकि मैं उस विधाता से पूछ सकूँ कि विधाता अगर वो है,
तो उसने एक औरत का विधाता बनने का अधिकार औरों को क्यों दे दिया
मुझे मेरी ही ज़िन्दगी की कुछ घड़ियाँ दे दो ,
कि  उन्हें मैंने किस तरह खर्च किया ,
इसका मुझे किसी को हिसाब न देना पड़े
कुछ पल के लिये ही सही , मुझे मुझको देदो !!

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