Sunday, September 15, 2013

एक शहर

मेरे जिस्म में एक शहर सा बसा है
 इस शहर में तन्हाई की हवा चलती है
यहाँ मायूसियों के डेरे हैं
आँसुओं के झरने हैं
सन्नाटे मेले हैं
यहाँ यादों की कई हवेलियाँ हैं ,
जिनपे उदासियों की सफेदी पुती हुई है …
कई 'अपने' जो मेरे विचारों की बस पकड़ कर
मेरे दिमाग से दिल तक आते हैं।
बीच में वो मेरे दिमाग की अक्लमंदी के स्टेशन पे रुकते भी हैं
पर मेरे दिल की बेवकूफियों की हरी झंडी उन्हें जल्द ही मिल जाती है।
दिल के  आँगन में मेरे सोये हुये अरमानों की बनी कुर्सियों पे बैठ ,
चाय की चुस्कियों संग वो 'अपने ' बीते लम्हों पे जमी गर्त हटाते हैं..
उन लम्हों में एक तपिश सी है ,
जो उस गर्त में महफूज़ है।
न जाने क्यों सब छेड़ जाते हैं उसे
और मेरे चेहरे पे उस तपिश की जलन छोड़ जाते हैं
इस शहर की आब - ओ - हवा ही कुछ ऐसी है
कि यहाँ कई ऐसे 'अपने ' आते हैं
जो जाते - जाते मुझे पुराने दर्द तौफ़े में दे जाते हैं !!

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