Sunday, October 6, 2013

अब नहीं बदलता मौसम मेरे घर का..

मेरे आंगन में अब बादल नहीं गरजते,
जिन्हें सुनके तुम डर जाया करती थी..
मेरी गली में उड़ती धूल भी अब थम गई है,
जो तुम्हारे पावो को मैला कर दिया करती थी..
मेरी छत पे अब पंछी नहीं आते,
जो सबेरे-सबेरे तुम्हारी नीन्द तोड़,
तुम्हें चिढ़ाते हुये उड़ जाते थे..
सर्दियों में ठंढी हवा के झोंके
अब मेरे घर में नहीं आते,
जो तुम्हारे सफेद गालों को लाल कर जाया करते थे..
मेरे कमरे में अब गर्मी की दोपहर भी नहीं आती,
जो तुम्हारी कमर पे पड़ी पासीने की बूँदों से मेरी नज़र नहीं हटने देती थी..
मुझे खाने में अब मिर्ची तेज़ नहीं लगती,
जिससे मेरी आँखों में आँसू तो आते थे
पर वो बहते तुम्हारी आँखों से थे..
या....हो सकता है, ये सब होता भी हो..
अब तुम जो नहीं, तो ये बातें मुझे पता ही नहीं चलतीं !!

No comments:

Post a Comment