जाने वो कौन सी सुबह है
जिसके इंतज़ार में मेरी जिंदगी की ये रात है ....
ये रात है कैसी जिसका रंग काला नहीं
इसकी रोशनी में चौंधियाने लगी हैं मेरी आँखें
इसके स्वाभाव में खामोशी नहीं
आवाज़ें इसकी बहरा कर रही हैं मुझे
घड़ी की सुई के संग बढ़ तो रही है ये
पर न जाने क्यों सुबह से नहीं मिल रही है ये रात....
जिसके इंतज़ार में मेरी जिंदगी की ये रात है ....
ये रात है कैसी जिसका रंग काला नहीं
इसकी रोशनी में चौंधियाने लगी हैं मेरी आँखें
इसके स्वाभाव में खामोशी नहीं
आवाज़ें इसकी बहरा कर रही हैं मुझे
घड़ी की सुई के संग बढ़ तो रही है ये
पर न जाने क्यों सुबह से नहीं मिल रही है ये रात....
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