Thursday, May 1, 2014

ये वक्त

अपने कंधों पे यादों की गठरी लिये
बढ़ रहा है ये वक्त एक अनजान डगर की ओर
हल्के से मेरा हाथ थामे, मेरे कदमों को राह दिखाता
चल रहा है संग - संग मेरे
हर ओर देखता , न जाने क्या सोचता
कभी - कभी गठरी से कुछ यादें निकाल मुझे दीखाता ,
मुस्कुराता, कुछ कहता भी
अपने आँसू मुझसे छिपाता पर रुकता नहीं,
और मैं रुक जाऊँ न कहीं,
इसलिये मेरे हाथ और मजबूती से थाम लेता !!

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