Thursday, August 29, 2013

चुपचाप सी ये रात

रात के बसेरे को हटाती रोशनी की किरड़े …
अँधेरे की चुप्पी को तोड़ती हर ओर की ये चहचआहट …
रह रह कर कह रहे थे मेरे कुछ ठहरते से कदम …
कि मैं रात की इस खामोश हार में शामिल हो जाऊं ,
या दिन के विजय - आगमन का स्वागत करूँ !!


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