Monday, August 19, 2013

थक गई हूँ मैं

कहीं कोई साहिल नहीं ,
कोई मंज़िल नहीं अब मेरी
कोई अंत नहीं इस राह का
कोई सुबह नहीं इस रात की
पूछते हैं पैर मेरे, कि कौन सा होगा आखरी क़दम.…
कैसे कहूँ, कि एक बहरी डगर पर चल पड़ी हूँ मैं,
जो ये सुनती ही नहीं कि अब थक गई हूँ मैं !!

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