Wednesday, January 9, 2013

रह गये हो तुम मुझमें ही कहीं

कल रात अलविदा तो कह दिया तुम्हें
पर आज सुबह की धुंध में हो कहीं तुम .
वक्त की लकड़ियाँ तो जल गईं
पर कुछ यादें अभी भी सुलग रही हैं ,
उन सुलगती हुई यादों के धुएं में हो कहीं तुम .
तेरे संग जिये लम्हे राख बन चुके हैं .
वो रातें कोयला बन रही हैं अब .
हमारी मुलाकातों की आग बुझने लगी है
पर लग रहा है जैसे मैं ख़ुद जलने लगी हूँ अब .
अलविदा तो कह दिया पर मुझमें ही कहीं ठहर से गये हो तुम !!

No comments:

Post a Comment