Friday, December 28, 2012

मेरी कल्पना

कल्पनाओं के पंखों से उड़ जाती मैं
हर एक देश.....
जी कर आती हर सपने को  .
मिलकर आती हर अपने को .
वहाँ कोई नियम नहीं और कोई भँवर नहीं ..
बस पलकें बंद करने की देरी  ..
बस सच से हाथ छुड़ाने की देरी ..
वो झूठ सही पर सच सा है .
वो वहम सही पर कुछ तो है .
कल्पना की हर सीढ़ी खोखली ,
कोई यथार्थ नहीं ,
पर सच का कोई बोझ भी नहीं ....
 कल्पना के अक्षर सफ़ेद स्याही से लिखे ,
जिनका कोई वजूद नहीं ,
पर उन्हें किसी के पढ़ लेने का डर भी नहीं ....
कल्पना निरीह है पर सर्वशक्तिमान है .
कल्पना निर्जीव है पर सपनों का जीवन्त रूप है .
कल्पना तू मात्र कल्पना है ,
पर छड़ भर ही सही हर सच से भली है !! 

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