तुम्हारी उलझी - पुलझी चोटी के बिखरे बालों सी तुम
कब रोती हो , कब हँसती हो क्या जानूँ .
तुम्हारी शर्ट के बंद ऊँचे - नीचे बटन सी तुम
कब रूठती हो , कब मानती हो क्या जानूँ .
आँखों में हरदम आँसू हैं , गाल हमेंशा फूले हैं .
कब खुश होती हो और कब गुस्सा ....क्या जानूँ .
तुम्हारी ऊँची - नीची स्कर्ट सी तुम
कब संग चलती हो और कब पीछे ....क्या जानूँ .
बिस्तर का कोना छीना मुझसे ,
मम्मी से भी दूर किया ,
घर में होने वाली हर ज़िद पर अपना पहला अधिकार किया .
पापा भी मुझसे पहले गोद में तुमको लेते हैं .
भैया का तुम अब नया खिलौना हो ,
मोहल्ले की अन्टियों की चर्चा हो .
मेरी भी सहेलियों को तुम प्यारी हो .
सबसे ज्यादा लड्डू तुमको मिलते हैं .
कपड़े भी हर बार तुम्हारे ही नये बनते हैं .
मेरी किताबें देख मुंह बिदकती हो
बस अपने रंगों में खो जाती हो .
हर रोज़ सोंचती मैं ....
तुम न होती तो क्या होता ,
जो भी मुझसे छिना , सब मेरा होता ..
पर आज जब तुमने मुझसे पीछे नहीं ,
मेरे संग चलने की कोशिश की ..
हाथ पकड़ कर धीरे से दीदी कहने की कोशिश की ..
एक बार लगा जैसे उन ठंढी उँगलियों ने भी कुछ कहा मुझसे .
मुड़कर देखा तुमको पर तुम तो चुप थी ,
हल्का सा मुस्काई , फिर से एक बार कहा मुझको दीदी .
हम - तुम स्कूल पहुँच चुके थे .
तुम अपनी क्लास की लाइन में थी और मैं अपनी ....
इंटरवल की घंटी बजते ही ,
मेरी क्लास के दरवाज़े पर थी तुम .
मैंने घूर के देखा तुमको .
तुम चुपचाप मेरी सीट पे आई ,
धीरे से मुट्ठी आगे की ..
खोल के देखा उसको मैंने ,
उसमें अचार की एक फांकी थी .
मम्मी ने तुमको नहीं दिया , मेरा अचार तुम लेलो दीदी ....
तुम्हारे छोटे से भोंदू चेहरे पे एक छोटी सी मुस्कान थी
और मेरे चेहरे पर 'बड़ी दीदी वाली बिग स्माइल' थी ..
कब रोती हो , कब हँसती हो क्या जानूँ .
तुम्हारी शर्ट के बंद ऊँचे - नीचे बटन सी तुम
कब रूठती हो , कब मानती हो क्या जानूँ .
आँखों में हरदम आँसू हैं , गाल हमेंशा फूले हैं .
कब खुश होती हो और कब गुस्सा ....क्या जानूँ .
तुम्हारी ऊँची - नीची स्कर्ट सी तुम
कब संग चलती हो और कब पीछे ....क्या जानूँ .
बिस्तर का कोना छीना मुझसे ,
मम्मी से भी दूर किया ,
घर में होने वाली हर ज़िद पर अपना पहला अधिकार किया .
पापा भी मुझसे पहले गोद में तुमको लेते हैं .
भैया का तुम अब नया खिलौना हो ,
मोहल्ले की अन्टियों की चर्चा हो .
मेरी भी सहेलियों को तुम प्यारी हो .
सबसे ज्यादा लड्डू तुमको मिलते हैं .
कपड़े भी हर बार तुम्हारे ही नये बनते हैं .
मेरी किताबें देख मुंह बिदकती हो
बस अपने रंगों में खो जाती हो .
हर रोज़ सोंचती मैं ....
तुम न होती तो क्या होता ,
जो भी मुझसे छिना , सब मेरा होता ..
पर आज जब तुमने मुझसे पीछे नहीं ,
मेरे संग चलने की कोशिश की ..
हाथ पकड़ कर धीरे से दीदी कहने की कोशिश की ..
एक बार लगा जैसे उन ठंढी उँगलियों ने भी कुछ कहा मुझसे .
मुड़कर देखा तुमको पर तुम तो चुप थी ,
हल्का सा मुस्काई , फिर से एक बार कहा मुझको दीदी .
हम - तुम स्कूल पहुँच चुके थे .
तुम अपनी क्लास की लाइन में थी और मैं अपनी ....
इंटरवल की घंटी बजते ही ,
मेरी क्लास के दरवाज़े पर थी तुम .
मैंने घूर के देखा तुमको .
तुम चुपचाप मेरी सीट पे आई ,
धीरे से मुट्ठी आगे की ..
खोल के देखा उसको मैंने ,
उसमें अचार की एक फांकी थी .
मम्मी ने तुमको नहीं दिया , मेरा अचार तुम लेलो दीदी ....
तुम्हारे छोटे से भोंदू चेहरे पे एक छोटी सी मुस्कान थी
और मेरे चेहरे पर 'बड़ी दीदी वाली बिग स्माइल' थी ..
अचार की एक फांकी matlab kya hoti hai, kaunsa achar ki phaanki ki aapne yaha par zikar kiya hai subhra ji
ReplyDeletekya aap फांकी ka matlab samjha saktein hain
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