Saturday, December 22, 2012

मुझे औरत न बनाना

ऐ खुदा ,
तू मुझे तारा बना दे ,
कि दूर गगन से देखूँ तेरी इस सुन्दर दुनिया को ..
तू मुझे चींटी बना दे ,
कि चलते - चलते चढ़ जाऊं मैं पर्वत पर ..
तू मुझे पंछियों से पंख दे दे ,
कि उड़ जाऊं मैं दूर कहीं ..
तू मुझे बादल बना दे ,
कि मैं दिल खोल के बरसूँ ..
तू मुझे डाल से गिरा पत्ता बना दे ,
कि मैं उड़ जाऊं कहीं हवा के झोंकों संग ..
तू मुझे नदिया की धार बना दे ,
कि मैं बहती ही जाऊं समंदर से मिलने की खातिर ..
कुछ न कर सके अगर तू मेरे लिये
तो मुझे रास्ते का पत्थर ही बना दे ,
कि हर ठोकर के साथ रास्ते के एक नये कोने से जा मिलूँ ..
पर रहम करना मुझपर
मुझे औरत न बनाना ....
ऐ खुदा ,
वैसे एक बात तो बता ..
तेरा वक्त फालतू है क्या
जो तू औरत बना के उसे ज़ाया करता है .
अगर है तो कभी उसे इतना बेबस बनाने की
वजह तो उसे ज़रूर बताना ....
कि आँखें तो हैं पर नज़रें झुकी हुई सी ..
आवाज़ तो है पर सहमी हुई सी ..
होंठ तो हैं पर एक नन्ही सी मुस्कान को भी तरसे ..
गर्दन तो है पर झुकी हुई सी ..
हाथ तो हैं पर खुद की हिफाज़त में असक्षम ..
क्या तू भी स्वार्थी है ,
जो अपनी स्रस्टि को पूरा करने की खातिर
रच दी है औरत ,
जो गला के खुद को देती है पूर्णता तेरी स्रस्टि को .
अगर ऐसी ही औरत बनानी है तुझे , तो ,
उसकी आँखों में कोई सपना न देना ..
उसे ये वहम न देना कि वो भी औरों के बराबर है ....
 

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