ये रस्ते ले जायें कहाँ, क्या पता
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ
ये रस्ते भी न जानें कि मेरी मंज़िल कहाँ
मैं ख़ुद भी न जानूँ कि मुझे जाना कहाँ ..
यूँ धूल उड़ाते चलना ..
गीली मिट्टी में पैरों का धंसना ..
रस्ते के पेड़ों से बातें करना ..
कभी रुकना , कभी थकना ..
कभी बीती डगर पे पैरों के निशान निहारना ..
कभी बाकी डगर को एकटक देखना ..
कभी लकड़ी की किरमिच से रस्ते की धूल पे अपना नाम लिखना ..
और कभी अपने ही पैरों से उसे मिटाना ..
कभी कहीं किनारे बैठ ,
थके हुए दिन की गोद में ऊंघाई लेते ढलते हुए सूरज को देखना ..
कभी सुबह - सवेरे ओस की बूंदों पर
बढ़ते मेरे क़दमों संग भोर के खिलखिलाते सूरज संग बतियाना ..
कभी किसी पेड़ की छाँव में बैठ ,
रस्ते के दोनों ओर के पेड़ों के धरती से छुप के ,
सबकी आँखों से बचकर आकाश की साक्षी में
उनके मिलन को देखना ..
और कभी इस रस्ते के दोनों ओर उनकी जुदाई महसूस करना ..
ये रस्ते जाते हैं कहाँ, नहीं पता
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ ....
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ
ये रस्ते भी न जानें कि मेरी मंज़िल कहाँ
मैं ख़ुद भी न जानूँ कि मुझे जाना कहाँ ..
यूँ धूल उड़ाते चलना ..
गीली मिट्टी में पैरों का धंसना ..
रस्ते के पेड़ों से बातें करना ..
कभी रुकना , कभी थकना ..
कभी बीती डगर पे पैरों के निशान निहारना ..
कभी बाकी डगर को एकटक देखना ..
कभी लकड़ी की किरमिच से रस्ते की धूल पे अपना नाम लिखना ..
और कभी अपने ही पैरों से उसे मिटाना ..
कभी कहीं किनारे बैठ ,
थके हुए दिन की गोद में ऊंघाई लेते ढलते हुए सूरज को देखना ..
कभी सुबह - सवेरे ओस की बूंदों पर
बढ़ते मेरे क़दमों संग भोर के खिलखिलाते सूरज संग बतियाना ..
कभी किसी पेड़ की छाँव में बैठ ,
रस्ते के दोनों ओर के पेड़ों के धरती से छुप के ,
सबकी आँखों से बचकर आकाश की साक्षी में
उनके मिलन को देखना ..
और कभी इस रस्ते के दोनों ओर उनकी जुदाई महसूस करना ..
ये रस्ते जाते हैं कहाँ, नहीं पता
मुझे तो बस चलते जाना है यहाँ ....
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