Sunday, September 15, 2013

एक मुलाकात रात से

चल आज 'रात' से मिलकर आते हैं
कुछ अपनी कहकर आते हैं
कुछ उसकी सुनकर आते हैं
दिन की रोशनी से कई राज़ छुपाये हैं
वो राज़ उसे बतलाकर आते हैं
रस्ते में 'शाम ' मिलेगी
वो रोकेगी , कुछ टोकेगी
बातों - बातों में वो पूछेगी
हर राज़ के पन्ने पलटेगी.....
माथे की शिकन में छिपा लेंगे वो राज़
चेहरे की झुर्रियों के बीच गुमा देंगे वो राज़
हथेलियों के लिफाफों में बंद कर देंगे वो राज़
जल्द ही विदा ले ' शाम ' से , आगे बढ़ना है
आज की इस मुलाकात में मुझे बहुत कुछ कहना है !!

एक शहर

मेरे जिस्म में एक शहर सा बसा है
 इस शहर में तन्हाई की हवा चलती है
यहाँ मायूसियों के डेरे हैं
आँसुओं के झरने हैं
सन्नाटे मेले हैं
यहाँ यादों की कई हवेलियाँ हैं ,
जिनपे उदासियों की सफेदी पुती हुई है …
कई 'अपने' जो मेरे विचारों की बस पकड़ कर
मेरे दिमाग से दिल तक आते हैं।
बीच में वो मेरे दिमाग की अक्लमंदी के स्टेशन पे रुकते भी हैं
पर मेरे दिल की बेवकूफियों की हरी झंडी उन्हें जल्द ही मिल जाती है।
दिल के  आँगन में मेरे सोये हुये अरमानों की बनी कुर्सियों पे बैठ ,
चाय की चुस्कियों संग वो 'अपने ' बीते लम्हों पे जमी गर्त हटाते हैं..
उन लम्हों में एक तपिश सी है ,
जो उस गर्त में महफूज़ है।
न जाने क्यों सब छेड़ जाते हैं उसे
और मेरे चेहरे पे उस तपिश की जलन छोड़ जाते हैं
इस शहर की आब - ओ - हवा ही कुछ ऐसी है
कि यहाँ कई ऐसे 'अपने ' आते हैं
जो जाते - जाते मुझे पुराने दर्द तौफ़े में दे जाते हैं !!

Wednesday, September 11, 2013

मुझे मुझको देदो

मुझे कुछ सादे पन्ने देदो
जिन्हें मैं वो सुना सकूँ जो मैंने हमेंशा कहना चाहा..
मुझे थोड़ा सा आकाश देदो
जिसे देख मैं उड़ने की उम्मीद कभी न मारूं..
मुझे कुछ रातें देदो
जिनके अँधेरे में मैं खुद को एक बार देखने की हिम्मत कर सकूँ
मुझे घर का एक खाली कोना देदो
जहाँ मैं खुद से पूछ सकूँ कि मैं , मैं ही हूँ
 या वो हो गई हूँ , जो ये दुनिया मुझे बनाना चाहती है
मुझे एक बार किसी मंदिर में जाने को देदो
ताकि मैं उस विधाता से पूछ सकूँ कि विधाता अगर वो है,
तो उसने एक औरत का विधाता बनने का अधिकार औरों को क्यों दे दिया
मुझे मेरी ही ज़िन्दगी की कुछ घड़ियाँ दे दो ,
कि  उन्हें मैंने किस तरह खर्च किया ,
इसका मुझे किसी को हिसाब न देना पड़े
कुछ पल के लिये ही सही , मुझे मुझको देदो !!

Monday, September 9, 2013

एक बार चलो संग मेरे

 एक बार चलो संग मेरे ,
मिलाना है तुमको किसी से ..
पर एक बात मानना मेरी ….
अपनी आँखों में काजल लगा के न आना
उसे दिखाऊंगा तेरी आँखों की ये सूजन ..
अपनी ओढ़नी कहीं राह में ही छोड़ देना ..
उसे दिखाऊंगा तेरा ये पीला पड़ता सफ़ेद रंग ..
सुनो !! हो सके तो रात में आना ,
क्योंकि , मैं जानता हूँ , दिन की रोशनी में
तुम उसे अपने होठों को छूने न दोगी
और मुस्कान फिर तुमसे रूठ के चली जायेगी।
बड़ी मिन्नतों के बाद वो मानी है तुमसे मिलने को..
कसम है तुम्हे मेरी , इस बार मना न करना !!