Monday, October 1, 2012

पिछले साल की बारिश

कल रात मेरे आँगन में इस साल का पहला सावन बरसा 
पर हम तो पिछले साल के सावन से इस कदर भीगे थे 
कि कल रात घंटों खड़े रहे आँगन में 
पर ये सावन भीगे हुए को क्या भिगोय.....
तन भीगा है और मन भी....
इस बारिश में चलती ठंडी हवा के मेरे बदन को 
छूने पर पिछले साल का ही पानी टपकता है..
बदन में पिछले साल की  ही सिहरन है..
मन में वही गुदगुदाहट है..
तुम्हारी छवि याद कर आँखों में अब भी वही शर्म है..
मेरी उँगलियाँ अब भी ठंड से उसी तरह काँप रही हैं..
बालों की उलझी लटों को मैंने अब तक नहीं सुलझाया है..
आँचल अभी भी उसी तरह मेरे सीने से लिपटा हुआ है..
पाँव में लगी मिट्टी से अब भी फिसलने का डर लग रहा है..
मेरे माथे की रोली धुलकर नाक और गालों को लाल कर चुकी है..
कल मैंने गालों को छुआ तो हथेलियाँ लाल हो गईं....
वैसे तो कल एक बरस बीत गया 
पर हम अब भी तुम्हारा हाथ थामे सावन की बौछारों में भीगते 
तुम्हारे साथ खड़े हैं............

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