साथ चलो न चलो पर साथ हो तुम
मेरी ज़रूरत का सामान हो तुम
मेरे दिल को दर्द की आदत सी पड़ गई है
उस दर्द का आधार हो तुम
तीर सी चुभती नजरों की आदत पड़ गई है हमें
मेरे बदन पर फिसलती वो आवारा नज़र हो तुम
कानों में घुलते ज़हर की अब आदत है हमें
तुम्हारे शब्दों का ज़हर हमारी ये आदत छूटने नहीं देता
ये डगमगाते कदम संभलते ही नहीं
क्योंकि हर कदम पर इन्हें तुम्हारे धोखे की आदत जो हो गई है
कल रात मैंने पुरानी यादों की पिटारी खोली थी
उसमें एक लम्हा भी खुशी का न मिला
क्योंकि उस पिटारी का हर लम्हा तेरे संग जिया था मैंने.......
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