मेरे दिल के हर कोने में उदासी की काई जमी हुई है
और छत मायूसियों के जालों से भरी हुई है....
एक दिन सोंचा , उम्मीद का झाड़ू उठा
इसे साफ करूँ.......
तब याद आया......
जब इस दिल के बंद किवाड़ों को पहली बार खोला था,
और तुम्हें यहाँ का मेहमान बनाया था,
तब , गल्ती कहें या नासमझी , जो भी कहें....
किवाड़ की चाभी तुम्हें ही दे बैठे थे.....
अब किसी और के घर में झाड़ू लगाने का कोई मतलब नहीं............
और छत मायूसियों के जालों से भरी हुई है....
एक दिन सोंचा , उम्मीद का झाड़ू उठा
इसे साफ करूँ.......
तब याद आया......
जब इस दिल के बंद किवाड़ों को पहली बार खोला था,
और तुम्हें यहाँ का मेहमान बनाया था,
तब , गल्ती कहें या नासमझी , जो भी कहें....
किवाड़ की चाभी तुम्हें ही दे बैठे थे.....
अब किसी और के घर में झाड़ू लगाने का कोई मतलब नहीं............
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