Tuesday, October 30, 2012

Script of Aplomb Spirulina ( client based project )

स्वस्थ जीवन एक अमूल्य निधि है और बीमारियाँ वो दीमक हैं
जो मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ - साथ उसके सफलतम भविष्य की नीव को भी खोखला कर देती हैं.
क्योंकि बेहतर स्वास्थ्य ही जीवन के हर क्षेत्र में सफ़लता की आधारशिला है .
जब हम हर आपदा से बचाव की व्यवस्था रखते हैं
तो बिमारियों से बचाव की व्यवस्था क्यों नहीं ....
एक सही आदत जो बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढाती है ..
एक सही आदत जिसे दुनिया के काफी देशों में पिछले 20 वर्षों से दिनचर्या का हिस्सा बनाया जा चुका है ..
Aplomb Spirulina एक ऐसा food supplement जिसके नियमित सेवन की आदत बिमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है .
Aplomb Spirulina न केवल पूर्णतयः सुरक्षित है बल्कि एक स्वस्थ जीवन के लिए बेहद आवश्यक है .
Spirulina कोई औषधि नहीं है बल्कि यह हमें औषधियों से दूर रखने का बेहतर और सुरक्षित माध्यम है .
यह एक प्रागैतिहासिक वनस्पति है
जो कि घुमावदार आकृति के शैवाल के रूप में पाई जाती है .
यह जिवाडू ( jivadu ) पिछले 3.5 अरब वर्षों से प्राक्रतिक परिवर्तनों को सहते हुए भी सदैंव फलता - फूलता रहा है .
यह खार के गुड़ वाला 100 % क्षारविशिष्ट खाद्द्य उत्पाद है .
इसमें मुलायम और आसानी से पचने योग्य कोशिकाओं द्वारा निर्मित एक दिवार नुमा होती है जिसकी प्रकृति प्रतिरक्षित स्फूर्तिदायक होती है .
  • USFDA, JHFA, KOSHER द्वारा प्रमाड़ित मैदानों में खेती 
  • फसल की कटाई 
  • धुलाई 
  • फुहार द्वारा सुखाई 
  • पीसकर पाउडर बनाया जाना 
  • फिर , पाउडर को टैबलेट का रूप देना 
और अन्ततः इसकी बेहद सुरक्षित तरीके से पैकिंग ....
ये पूरा व्यवस्था - क्रम Aplomb Spirulina की शुद्धता आश्वासित करता है .
इसकी उत्पत्ति में प्रयुक्त जल में उपस्थित churninga इसमें क्लोरोफिल की उत्पत्ति में सहायक होते हैं
और , सूर्य की किरणों द्वारा प्रकाश संशलेश्हड़ की क्रिया Spiriluna की वृद्धी में सहायक  है .
इसमें उपस्थित प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , फैट , मौश्चराइजर , विटामिन्स , बीटा - कैरोटीन , xanthophyll, chlorophyll, phycocynin और आयरन का पर्याप्त सम्मिलन बेहतर खान - पान के बावजूद शारीर के अधूरे ( poshad) को दूर करता है .
इसका नियमित प्रयोग acidity को दूर करके पाचन - शक्ति को तो बढाता ही है
साथ ही metabolic process में भी वृद्धी करता है .
कभी - कभी स्वस्थ खान - पान और सही दिनचर्या के बावजूद हमें कुछ ऐसी भयावह बिमारियों के प्रकोप का सामना करना पड़ता है जिसके वर्षों के इलाज के बावजूद भी उत्तम स्वास्थ्य की पुनः प्राप्ति की कोई गारेंटी नहीं ....
कैंसर उन्हीं असाध्य बिमारियों में से एक है .
शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक वरदान स्वरूप Aplomb Spirulina शारीर में कैंसर युक्त कोशिकाओं की बढ़त को रोकता है .
इसके नियमित प्रयोग से circulatory system में आने वाली सभी समस्याएं लगभग न के बराबर रह जाती हैं .
इसके प्रयोग से ( avshoshad ) की दर भी बढती है .
पेट में होने वाली जलन की यह राम्बाड़ औषधि है क्योंकि यह antioxidents का एक अच्छा क्ष्रोत है .
इसके सभी अद्वित्तीय गुड़ों के अतिरिक्त इसकी एक दुर्लभ विशेषता कि यह सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए समान रूप से लाभकारी है .
इसका यह गुड़ इसे और भी अधिक उपयोगी और कारगर सिद्ध करता है।
उचित आहार और संतुलित जीवन - शैली के बावजूद हमारा बीमारियों से सामना ....
ये एक बेहद निराशापूर्ण स्थिति है .
पर यह एक दुखद सत्य है कि आज के समय में यह स्थिति एक आम बात हो गई है .
जरुरत अब जिन्दगी के पुराने ढर्रे को छोड़ कुछ नए बदलाव लाने की है
जरुरत अब बीमारियों के समक्ष घुटने टेकने के बजाए उन्हें खुद के करीब भी न फटकने देने की है .
जरुरत अब एक सही आदत अपनाने की है .
जरुरत Aplomb Spirulina का सेवन अपनी दिनचर्या का एक हिस्सा बनाने की है .
क्योंकि बीमारी से संघर्ष से बेहतर
बीमारी से बचाव है !!


Saturday, October 27, 2012

i am still in the same boat

i am still crying
but with smile..
i am still sad
but for the past..
i am still alone
but seeing people who are happy for me..
i am still shivering
but with excitement..
i am still here
but far away from the past........

Friday, October 19, 2012

किसी और का घर

मेरे दिल के हर कोने में उदासी की काई जमी हुई है
और छत मायूसियों के जालों से भरी हुई है....
एक दिन सोंचा , उम्मीद का झाड़ू उठा
इसे साफ करूँ.......
तब याद आया......
जब इस दिल के बंद किवाड़ों को पहली बार खोला था,
और तुम्हें यहाँ का मेहमान बनाया था,
तब , गल्ती कहें या नासमझी , जो भी कहें....
किवाड़ की चाभी तुम्हें ही दे बैठे थे.....
अब किसी और के घर में झाड़ू लगाने का कोई मतलब नहीं............

Monday, October 15, 2012

अब सबेरा होने को है 
रात छंटने लगी है, अब सबेरा होने को है
इस कोहरे में सूरज नहीं दिख रहा तो क्या..
पर अब सबेरा होने को है.....
 ऐ पथिक अब तू देर न कर
थाम हाथ अपनी डगर का
बढ़ा कदम एक हौसले का
रात कितनी भी लम्बी क्यों न हो
वो सबेरा रोक पाती नहीं
सूरज कितना भी अलसाया क्यों न हो
वो आकाश का आंचल छोड़ पाता नहीं
ऐ पथिक अब तू देर न कर
थाम हाथ अपनी डगर का
बढ़ा कदम एक हौसले का
तू रुकना नहीं, थमना नहीं
जबतक मंजिल न आए कहीं टिकना नहीं....
इस जीवन - डगर में कौन पूछे कि तूने क्या खोया
सब पूछें कि तूने क्या पाया
लक्ष्य दूर है , सही..
सफ़र मुश्किलों भरा , सही..
मगर ,  ऐ पथिक अब तू देर न कर
खोने - पाने के उत्तर की परवाह भी न कर
पर  खुद से नज़र कभी न चुरा
खुद को बता कि तूने वो पाया जो पाने आया था?
ये न कह कि तूने क्या खोया....
क्योंकि कोई न पूछे कि तूने क्या खोया
सब पूछें की तूने क्या पाया....
सफ़र मुश्किलों भरा
साथी सर्प-डंक सा..
 ऐ पथिक तू अकेला ही चल
तू मालिक अपने मन का
तू राही अपनी डगर का
कौन जाने पत्थर में राम है या नहीं
तू विधाता अपनी किस्मत का
कर यकीं खुद पे ज़रा
हौसला कर अकेले बढ़ने का
बस साथ हो तेरे एक कदम से दूसरे कदम का
बढ़ चल ज़रा , अब रुक नहीं
ऐ पथिक अब तू देर न कर........... 




Sunday, October 7, 2012

तुम साथ हो मेरे


साथ चलो न चलो पर साथ हो तुम
मेरी ज़रूरत का सामान हो तुम
मेरे दिल को दर्द की आदत सी पड़ गई है
उस दर्द का आधार हो तुम
तीर सी चुभती नजरों की आदत पड़ गई है हमें
मेरे बदन पर फिसलती वो आवारा नज़र हो तुम
कानों में घुलते ज़हर की अब आदत है हमें
 तुम्हारे शब्दों का ज़हर हमारी ये आदत छूटने नहीं देता
ये डगमगाते कदम संभलते ही नहीं
क्योंकि हर कदम पर इन्हें तुम्हारे धोखे की आदत जो हो गई है
कल रात मैंने पुरानी यादों की पिटारी खोली थी
उसमें एक लम्हा भी खुशी का न मिला
क्योंकि उस पिटारी का हर लम्हा तेरे संग जिया था मैंने.......

Monday, October 1, 2012

पिछले साल की बारिश

कल रात मेरे आँगन में इस साल का पहला सावन बरसा 
पर हम तो पिछले साल के सावन से इस कदर भीगे थे 
कि कल रात घंटों खड़े रहे आँगन में 
पर ये सावन भीगे हुए को क्या भिगोय.....
तन भीगा है और मन भी....
इस बारिश में चलती ठंडी हवा के मेरे बदन को 
छूने पर पिछले साल का ही पानी टपकता है..
बदन में पिछले साल की  ही सिहरन है..
मन में वही गुदगुदाहट है..
तुम्हारी छवि याद कर आँखों में अब भी वही शर्म है..
मेरी उँगलियाँ अब भी ठंड से उसी तरह काँप रही हैं..
बालों की उलझी लटों को मैंने अब तक नहीं सुलझाया है..
आँचल अभी भी उसी तरह मेरे सीने से लिपटा हुआ है..
पाँव में लगी मिट्टी से अब भी फिसलने का डर लग रहा है..
मेरे माथे की रोली धुलकर नाक और गालों को लाल कर चुकी है..
कल मैंने गालों को छुआ तो हथेलियाँ लाल हो गईं....
वैसे तो कल एक बरस बीत गया 
पर हम अब भी तुम्हारा हाथ थामे सावन की बौछारों में भीगते 
तुम्हारे साथ खड़े हैं............