फिर अकेले हो गए हम
साथ चलने को तो कई मुसाफिर चलते हैं संग
पर राह के मोड़ पर
मेरे हाथों से अपने हाथों की पकड़ ढीली कर
बस 'अलविदा ' कहने के अल्फाज
रह जाते हैं शेष उनकी जबां पर
मोड़ के आगे का रास्ता
मेरी तनहाई के साथ के संग शुरू होता है
कुछ दूर जाकर तनहाई मुस्कुरा के अलविदा कहती है
और , हाथ बढ़ता है कई मुसाफिरों का मेरे हाथों की ओर
पर अगला मोड़ आते ही
उनके अलविदा कहने का वक्त हो जाता है
और तनहाई से फिर मुलाकात की घड़ी
नज्दीक आ जाती है......
साथ चलने को तो कई मुसाफिर चलते हैं संग
पर राह के मोड़ पर
मेरे हाथों से अपने हाथों की पकड़ ढीली कर
बस 'अलविदा ' कहने के अल्फाज
रह जाते हैं शेष उनकी जबां पर
मोड़ के आगे का रास्ता
मेरी तनहाई के साथ के संग शुरू होता है
कुछ दूर जाकर तनहाई मुस्कुरा के अलविदा कहती है
और , हाथ बढ़ता है कई मुसाफिरों का मेरे हाथों की ओर
पर अगला मोड़ आते ही
उनके अलविदा कहने का वक्त हो जाता है
और तनहाई से फिर मुलाकात की घड़ी
नज्दीक आ जाती है......
nice, bohot acha likha hai..........
ReplyDeletethank you..
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