Thursday, September 6, 2012

fir akele ho gae hum

 फिर अकेले हो गए हम 
साथ चलने को तो कई मुसाफिर चलते हैं संग 

पर राह के मोड़ पर
मेरे हाथों से अपने हाथों की पकड़ ढीली कर
बस 'अलविदा ' कहने के अल्फाज
रह जाते हैं शेष उनकी जबां पर
मोड़ के  आगे का रास्ता
मेरी तनहाई के साथ के संग शुरू होता है
कुछ दूर जाकर तनहाई मुस्कुरा के अलविदा कहती है
और , हाथ बढ़ता है कई मुसाफिरों का मेरे हाथों की ओर
पर अगला मोड़ आते ही
उनके अलविदा कहने का वक्त हो जाता है
और तनहाई से फिर मुलाकात की घड़ी
नज्दीक आ जाती है......

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