मेरे आंचल के धागों की आंड से दिखतीं , मुझे ढूढती नजरें
उन नजरों की रफ़्तार से भी तेज रफ़्तार से भागने की मेरी कोशिश
कोई देख न ले , कोई ढूंढ़ न ले
कोई भांप न ले कि हूँ मैं यहीं
मैं छिपती रही , खुद को छिपाती रही
कहते हैं कोशिशें कभी ज़ाया नहीं जातीं
पर मुझे वो ठिकाना ही न मिला जहाँ
मैं खुद को छिपा पाती!!
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