Saturday, September 15, 2012

Diary is the best option of a friend, a lover, a comrade or of an intimate soul mate. what if, it doesn't support you verbally. what if, it doesn't hug you when you feel lonely. what if, it doesn't kiss you back when you kiss it. what if, it doesn't wipe your tears when you cry. 
it serves itself in front of you to express freely what you actually think without any manipulation or decoration of your thoughts. 
it opens itself when you badly need someone....


वो सुनती  रही 

हम बस कहते रहे 
और मेरी डायरी सुनती रही 
न कुछ कहा , न कुछ पूछा 
न उसकी जबान पर कोई सवाल था 
और , न उसकी आँखों में .. 
न उसकी तनी हुई भौहों ने 
किसी बात पर आपत्ति जताई 
न उसने मेरा हाथ थामकर 
मुझे दिलासा ही दी ..
उसका मन मेरी बातों से भीगता रहा 
और तन मेरी आँखों के पानी से ..
हम बस कहते रहे ,
और वो सुनती रही  ....

Thursday, September 13, 2012

खुद को छिपाती रही


मेरे आंचल के धागों की आंड से दिखतीं , मुझे ढूढती नजरें 

उन नजरों की रफ़्तार से भी तेज रफ़्तार से भागने की मेरी कोशिश 
कोई देख न ले , कोई ढूंढ़ न ले 
कोई भांप न ले कि हूँ मैं यहीं
मैं छिपती रही , खुद को छिपाती रही 
कहते हैं कोशिशें कभी ज़ाया नहीं जातीं 
पर मुझे वो ठिकाना ही न मिला जहाँ
मैं खुद को छिपा पाती!!

Wednesday, September 12, 2012

mera bharosa..

mera bharosa
samandar ki gahraiyon me utarne lagi hu main
par mere haath us tinke ko chodte hi nahi
jiska sahara hai mujhe, ki,
shayad main paar lag jaun
paani ke ye hilore mujhe dubone ki purjor koshish me hain
aur main is koshish me hu, ki,
kahi us tinke par mera bharosa in hiloro me na doob jai.........

ek mulakat raat se..

chal aaj 'raat' se milkar aate hain..
kuch apni kahkar aate hain..
kuch uski sunkar aate hain..
din ki roshni se kai raaz chupae hain..
vo raaz use batlaakar aate hain..
raste me 'shaam' milegi..
vo rokegi, kuch tokegi..
baaton baaton me vo puchegi..
har raaz ke panne paltegi..
maathe ki shikan me chipa lenge vo raaz..
chehre ki jhurriyon ke biich guma denge vo raaz..
hatheliyon ke lifafon me band kar denge vo raaz..
jald hi vida le 'shaam' se, aage badhna hai..
aaj ki is mulakat me mujhe bahot kuch kahna hai....

ajnabi..

अजनबी 
हर बार मुझे अजनबी से लगते हो तुम
परिचित हो पर अपरिचित की तरह मिलते हो तुम
मेरी रूह को महसूस होते हो तुम
फिर क्यों दिल की सरहदों से दूर लगते हो तुम
मेरे जीवन का साहिल हो तुम
फिर क्यों समन्दर की गहराई लगते हो तुम

इतने करीब होकर भी क्यों दूर लगते हो तुम 
मेरी जिन्दगी का हर जवाब हो तुम
फिर क्यों एक सवाल लगते हो तुम....

Thursday, September 6, 2012

fir akele ho gae hum

 फिर अकेले हो गए हम 
साथ चलने को तो कई मुसाफिर चलते हैं संग 

पर राह के मोड़ पर
मेरे हाथों से अपने हाथों की पकड़ ढीली कर
बस 'अलविदा ' कहने के अल्फाज
रह जाते हैं शेष उनकी जबां पर
मोड़ के  आगे का रास्ता
मेरी तनहाई के साथ के संग शुरू होता है
कुछ दूर जाकर तनहाई मुस्कुरा के अलविदा कहती है
और , हाथ बढ़ता है कई मुसाफिरों का मेरे हाथों की ओर
पर अगला मोड़ आते ही
उनके अलविदा कहने का वक्त हो जाता है
और तनहाई से फिर मुलाकात की घड़ी
नज्दीक आ जाती है......