Thursday, February 26, 2015

इन आँखों ने कई शहर देखे हैं
कई रस्ते मेरे क़दमों से तेज रफ़्तार में नापे हैं इन्होंने
कई लफ्ज़ों के असर से ये डबडबाई भी हैं
कई बार पूरी रात जागी हैं ये आँखें
वैसे मौके तो कई थे मुस्कुराने के ,
पर उन मौकों पे गैर बन जाती थीं ये आँखें !

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