Wednesday, July 15, 2015

सब कुछ वहीँ है . . .

शामें बुझी सी नहीं
मौसम बेरंग नहीं
दिन ये बंजर नहीं
सब कुछ सही है , सब कुछ वहीँ है
फिर क्यूँ लग रहा है सब कुछ बिका हुआ सा है
जैसे हम किसी और के जश्न में सजे हुये खड़े हैं !!


Thursday, February 26, 2015

इन आँखों ने कई शहर देखे हैं
कई रस्ते मेरे क़दमों से तेज रफ़्तार में नापे हैं इन्होंने
कई लफ्ज़ों के असर से ये डबडबाई भी हैं
कई बार पूरी रात जागी हैं ये आँखें
वैसे मौके तो कई थे मुस्कुराने के ,
पर उन मौकों पे गैर बन जाती थीं ये आँखें !