Friday, June 6, 2014

मेरे वो पल

अब वक्त ठहरता नहीं मेरे नज़दीक आकर
जाने क्यों नज़रें चुराने लगा है मुझसे
कई बार इसको मिन्नतों से रोका
कई बार तो इसे ज़िद करके भी रोकना चाहा
पर ये तो मिलता है ऐसे जैसे मुझे पहचानता ही नहीं
मैंने इससे अपने ही तो लम्हे वापस मांगे थे
पर ऐसा लगता है जैसे मेरे वो पल
किसी और को दे आया है ये...
उन लम्हों में मेरी यादें हैं,
उनकी एक - एक पर्त में हज़ारों साँसें हैं,
जिनमें किसी का नाम जान बनके बसा था...
हालातों ने उन लम्हों को जला दिया,
और वक्त ने मुझे उनकी राख भी न लौटाई.....
पर लगता है जैसे कि कुछ अब भी बाकी है 
वरना मेरी बेचैनियाँ यूँ इस तरह उन लम्हों को न पुकारतीं
और ये वक्त मुझसे यूँ इस तरह बेरुखाई न करता !!

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