Tuesday, November 6, 2012

पुराने जूते

आज पुराने जूतों में पांव डाला
तब फिर से अहसास हुआ
उस गीली मिट्टी का ,
जिसमें सनी थीं कुछ पिछली यादें ....
उस मिट्टी में कुछ कंकड़ भी थे ,
जिनकी चुभन अब इतनी तकलीफ न दे रही थी .
क्योंकि अब ये चुभन भी अपनी सी लगती है ..
इस आज में तो अब परिचित चुभन भी न रही ..
अब लगता है ..
वो 'कल ' इतने भी बुरे न थे
जब हम उनसे जुदा न थे ..
आज आये हैं 'आज' में
तब समझे हैं कीमत उनकी ....

Monday, November 5, 2012

इश्क के मायने

कागज़ों पर खिंची लकीरों में
हम खोजते रहे इश्क के मायने ,
पर , इश्क के मायने तो तेरी आँखों में हैं
जो सुनती हैं वो , जो मैं कहता भी नहीं .
इश्क के मायने तो तेरे आँचल में हैं
जो तेरे बजाय मुझसे लिपटता है .
इश्क के मायने तेरी उस छोटी सी मुस्कान में हैं
जो शर्मा के भी खिलखिलाती हँसी बन जाती है .
इश्क के मायने तेरे नंगे पैरों में हैं
जो बेधड़क बेपरवाह मेरे आंगन में आ जाते हैं .
इश्क के मायने बस तेरे एक खयाल भर में हैं ....

Sunday, November 4, 2012

फिर अधूरे रह गए हम

फिर अधूरे रह गए हम ..
 तुम थे तो पूरे होने लगे थे हम
याद है हमें अब भी ,
अँधेरी गलियों में ढूंढ़ रहे थे हम खुद को ..
गली - दर - गली भटक रहे थे हम .
कई बार ठोकर लगी , कई बार गिरने से भी बचे
पर रुकते कैसे , ढूंढ़ जो रहे थे खुद को .....
एक मोड़ पे हमें तुम दिखे
एक मस्त चाल से चलते तुम नजदीक आए ,
हमें पता भी न चला और तुम साथ चलने लगे .....
जब रुक कर देखा तो तुम साथ मेरे थे .
एक पल सोंचा , साथी हो या हमराही ..
न साथी हो न हमराही ..
बस संग - संग आए दो - चार कदम ..
तुम पथिक हो अपनी राह के ,
और , हम भटके खुद से ....
न साथ सफ़र सम्भव है
न कोई मिलन सम्भव है
फिर ये कैसा असमंजस .......
जब इतनी है दूरी
तो संग चले क्यों थे ..
पूरा किया था हमें बस छोड़ने को अधूरा ..
इस दिवा - स्वप्न में जीने देते
कि , साथी भी हो और हमराही भी ....
एक बात कहें ! जब संग चले तुम मेरे ,
तब भी खोज रहे थे हम खुद को
पर पता था कि अब कोई दरकार नहीं इसकी ....
पर जब एक गली में खुद को तनहा पाया ,
तब हर भरम टूटा
और निगाहों की रफ़्तार तेज हुई ,
तलाश में खुद की ..
आँखों में तलाश थी
जबां पे पुकार थी
और मन में चित्कार थी
कि फिर अधूरे रह गए हम !!