मेरी 14 वर्षीय बेटी सुगंधा आज मुझसे इस बात पे नाराज़ होके चली गई कि उसके लेखक पिता के एक विवादस्पद इंटरव्यू में महिला - लेखकों के प्रति उनकी असंवेदनशील टिप्पड़ी पर टीवी छिड़े विवाद को देख मैंने उसके पिता के विरुद्ध कुछ नहीं कहा और जब सुगंधा गुस्से में अपने पिता के खिलाफ बरस रही थी उसकी बातों में अपनी सहमति नहीं जाहिर की। सुगंधा एक बहुत ही होनहार और आज्ञाकारी बच्ची है। मेरी हर बात आँख मूँद के मानती है सिवाय उन बातों के जो मैं उसके पिता के पक्ष में कहती हूँ। उसे अपने पिता से कोई द्वेश नहीं पर अब उसका 14 वर्षीय दिमाग ये समझने लगा है कि वो लड़की है और लड़कों से अलग है मगर उनसे कम नहीं है। अगर कोई लड़कियों को लड़कों से काम आँकता है तो ये उसकी क्षमताओं का भी काम आंकलन है और जब यह उसी के पिता द्वारा किया जाय और उसकी माँ इसमें अपनी मूक सहमति दे तो उसका क्रोध स्वाभाविक था और आज सुबह भी यही कुछ हुआ था जो मुझे अपनी मूक सहमति देने पर बाध्य करता था और सुगंधा का मेरे प्रति रोष को बढ़ता था।
कहने को तो बात हमारी पारिवारिक सीमाओं के बहार की है पर इसका असर घर के भीतर के आपसी रिश्तों को हिलाने के लिए काफी था। सुगंधा अपने पिता के सबसे बड़े आलोचकों में से एक हो चुकी थी।
सुबोध मेरे पति, अंग्रेजी साहित्य के जाने माने लेखक हैं , जिनसे मेरी मुलाकात पहली बार तब हुई थी जब मेरे एक हिन्दी दैनिक में कार्यकाल के दौरान मुझे सुबोध का इंटरव्यू लेने का मौका मिला। मुझे अब भी याद है मैंने उनसे प्रश्न किया था कि आखिर वो कौन सी खास बात है जो उन्हें एक सफल लेखक बनाती है। इसके उत्तर में उन्होंने कहा था कि उनका पुरुष होना कई कारडों में से एक कारड है जो उन्हें एक अच्छा लेखक बनाता है। मैं दंग रह गई थी कि कितनी हिम्मत है इस आदमी में जो मेरे मुँह पे ये बात कहने की ढिठाई कर रहा है। उनकी इस बेबाकी ने बहुत लोगों पर असर किया। असर मुझ पर भी हुआ और ये असर 7 महीने बाद और ज्यादा ही हुआ जब मुझे मेरी बुआ से ये पता चला की जिससे मेरी शादी तय हुई है वो यही औरत को हास - परिहास के विषय से ज्यादा कुछ न समझने वाले अंग्रेजी साहित्य के बहुत बड़े लेखक सुबोध सहाय हैं। सुबोध सहाय के साथ नया रिश्ता जुड़ने के साथ मेरे पुराने रिश्ते पीछे रह गए। मेरी इस 17 साल की शादी में मैं एक पल भी वो नहीं याद कर पाऊँगी जब मुझे ये लगा हो कि सुबोध एक अच्छे पति नहीं हैं या मैं मेरे माँ - बाप के घर में सुबोध के घर से ज्यादा सुखी थी।
सुबोध की महिलाओं के विषय में कही गई हर बात के विषय में मैं बौत सोंचती हूँ पर आजतक इस निष्कर्ष पर नहीं आ सकी कि सुबोध के विचार वास्तव में सही हैं या गलत। वो हमेंशा कहते हैं मुख्यतः औरतें बुद्धिमान नहीं होतीं। अरे बुद्धिमान क्या ख़ाक बनेंगी वो जब उन्हें चूल्हा - चौका के आगे बढ़ने ही नहीं दिया जायेगा। चलो मानती हूँ कि अब लड़कियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है पर किताबी ज्ञान से तो कोई बुद्धिमान नहीं हो सकता और लड़कियों के पास ' प्रैक्टिकल नॉलेज ' का कोई श्रोत नहीं। रात में जब घर में सब टीवी पर समाचार देखते हैं तब वो रसोई में खाना बनाती हैं।
कहने को तो बात हमारी पारिवारिक सीमाओं के बहार की है पर इसका असर घर के भीतर के आपसी रिश्तों को हिलाने के लिए काफी था। सुगंधा अपने पिता के सबसे बड़े आलोचकों में से एक हो चुकी थी।
सुबोध मेरे पति, अंग्रेजी साहित्य के जाने माने लेखक हैं , जिनसे मेरी मुलाकात पहली बार तब हुई थी जब मेरे एक हिन्दी दैनिक में कार्यकाल के दौरान मुझे सुबोध का इंटरव्यू लेने का मौका मिला। मुझे अब भी याद है मैंने उनसे प्रश्न किया था कि आखिर वो कौन सी खास बात है जो उन्हें एक सफल लेखक बनाती है। इसके उत्तर में उन्होंने कहा था कि उनका पुरुष होना कई कारडों में से एक कारड है जो उन्हें एक अच्छा लेखक बनाता है। मैं दंग रह गई थी कि कितनी हिम्मत है इस आदमी में जो मेरे मुँह पे ये बात कहने की ढिठाई कर रहा है। उनकी इस बेबाकी ने बहुत लोगों पर असर किया। असर मुझ पर भी हुआ और ये असर 7 महीने बाद और ज्यादा ही हुआ जब मुझे मेरी बुआ से ये पता चला की जिससे मेरी शादी तय हुई है वो यही औरत को हास - परिहास के विषय से ज्यादा कुछ न समझने वाले अंग्रेजी साहित्य के बहुत बड़े लेखक सुबोध सहाय हैं। सुबोध सहाय के साथ नया रिश्ता जुड़ने के साथ मेरे पुराने रिश्ते पीछे रह गए। मेरी इस 17 साल की शादी में मैं एक पल भी वो नहीं याद कर पाऊँगी जब मुझे ये लगा हो कि सुबोध एक अच्छे पति नहीं हैं या मैं मेरे माँ - बाप के घर में सुबोध के घर से ज्यादा सुखी थी।
सुबोध की महिलाओं के विषय में कही गई हर बात के विषय में मैं बौत सोंचती हूँ पर आजतक इस निष्कर्ष पर नहीं आ सकी कि सुबोध के विचार वास्तव में सही हैं या गलत। वो हमेंशा कहते हैं मुख्यतः औरतें बुद्धिमान नहीं होतीं। अरे बुद्धिमान क्या ख़ाक बनेंगी वो जब उन्हें चूल्हा - चौका के आगे बढ़ने ही नहीं दिया जायेगा। चलो मानती हूँ कि अब लड़कियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है पर किताबी ज्ञान से तो कोई बुद्धिमान नहीं हो सकता और लड़कियों के पास ' प्रैक्टिकल नॉलेज ' का कोई श्रोत नहीं। रात में जब घर में सब टीवी पर समाचार देखते हैं तब वो रसोई में खाना बनाती हैं।