Sunday, May 19, 2013

मैं मुझ सी नहीं

मैं मुझ सी नहीं , मैं सब सी नहीं 
मैं हूँ ही नहीं , या दिखती नहीं 
एक डाल का टूटा पत्ता हूँ या सागर से बिछड़ी लहर हूँ मैं 
कागज़ की नाव हूँ या टूटी सी पतवार हूँ मैं ....
समय - भंवर में उलझी हूँ और अपनों से ही बिछड़ी हूँ 
ख़ोज रही हूँ कुछ, इस समय - काल की पर्तों में ..
ख़फा हूँ मैं सबसे या ख़फा है जग मुझसे ..
कोई भूल नहीं एक पहल हूँ मैं 
जीवन के पर्याय बदलने को अटल हूँ मैं 
रुक जाऊं नहीं, थम जाऊं नहीं
सही गलत के फेरों में पड़ जाऊं नहीं 
धूल में उड़ता एक तिनका हूँ  
मुरझाई सी डाली की नई कोपल हूँ मैं 
ढूंढ़ रही हूँ कुछ जवाब 
ढूंढ़ रही हूँ कई बातों के सच ..
एक नई सुबह से मिलना है 
हर बात का मतलब सुनना है 
अब कल्पनाओं और कविताओं में नहीं ,
हकीकत में कहीं एक बार रूबरू होना है !!

Saturday, May 4, 2013

who..you or me

when you are stranger,
you seem to be interesting
when you are known,
you sound common
when you are my closed one,
you are being judged by my intelligence
when you become a soul of mine,
I get bore of you....
It is me, who can't sustain too much of you,
or it is you, whom 'too much' is unbearable for me !!