ये कहानी पांच दोस्तों की है, अंश, प्रिया, शेफाली, अभिषेक और अमित. lucknow university के इकोनोमिक्स डिपार्टमेंट में मुलाकात हुई इनकी. दिन गुजरने के साथ - साथ इन पांचो की दोस्ती और मजबूत होती गई. पढ़ाई पूरी होने के बाद सब अलग - अलग राहों पर चल पड़े पर जो एक राह पर चले वो अंश और प्रिया थे, उन्होंने शादी कर ली थी और इसमें दिल टूटा शेफाली का जो की अंश को चाहती थी.
यहाँ से कहानी १८ साल आगे का रुख करती है. एक बार फिर सब एक - दूसरे से मिलते हैं पर इस बार प्रिया नहीं मिलती. उन सबके मिलने के करीब एक साल पहले प्रिया ने आत्महत्या कर ली थी. वो सब प्रिया की बरसी में मिलते हैं. प्रिया नहीं होती पर इस बार संध्या है, प्रिया की छोटी बहन, वह भी बरसी की पूजा में आती है और अपने साथ प्रिया के पढ़ाई के लिए लखनऊ आने से पहले की जिन्दगी भी लाती है. 'शेफाली, अंश, अमित और अभिषेक' प्रिया इन सब के बहुत करीब थी पर प्रिया के जाने के बाद सबको लगता है जैसे वे प्रिया को समझे ही न थे.
यह एक सीधी सी पगडंडी पर चलने वाली साधारण सी कहानी है जो की जीवन के कई दोराहों से रूबरू होती हुई आगे बढती है. इस कहानी में किसी को किसी से नहीं जीतना है पर एक तरह की लड़ाई सब लड़ रहे हैं और इन पाँचों में से वो जो इस लड़ाई में हारा वो थी प्रिया, जिसे हालात ने हरा दिया या आत्महत्या करके उसने खुद हालातों से हार मान ली, मै भी इसी सवाल का जवाब ढूंढ रही हूँ.
प्रिया के जाने के बाद प्रिया का व्यक्तित्व सबके लिए एक पहेली बन गया है. यह एक मजबूत वाक्तित्व वाला चरित्र है या कमजोर हारा हुआ चरित्र या एक दंभी चरित्र ,कह पाना मुश्किल है क्योंकि जैसा की शेफाली ने बताया, प्रिया एक मजबूत व्यक्तित्व वाला चरित्र है , जिसके अपने उसूल हैं , अपने आदर्श हैं परन्तु अगर प्रिया को अंश की नजरों से देखा जाए तो यह एक दम्भी चरित्र है , जिसमे उसके वही उसूल , वही आदर्श उसके दंभ की पराकास्ठा हैं. अभिषेक कहता है की आत्महत्या बुजदिली की निशानी है इसलिए उसके नजरिए से प्रिया एक कमजोर व्यक्तित्व वाला चरित्र है.
एक बार शेफाली, प्रिया और अंश के घर में काम करने वाली नौकरानी से भी मिलती है तब इस कहानी के कुछ और चरित्रों के कुछ और नए चेहरे सामने आते हैं.प्रिया की मौत के बाद अंश दिल्ली में रहने लगा था , उसके बच्चे शेखर जो की १४ साल का था और गुडिया जो की ९ साल की थी, अंश के पास ही रहते थे. शेखर बहोत कम बात करता था . उसने सीधे - सीधे तो कभी कुछ नहीं कहा था पर शेफाली ने उसके और अंश के बीच में एक मनमुटाव को हमेशा महसूस किया था . शेखर और गुडिया का एडमीशन शेफाली ने अपने बच्चों के स्कूल में ही करवा दिया था. स्कूल से आने के बाद शेखर और गुडिया, शेफाली के घर पर ही रहते. शाम को काम से लौटते वक्त अंश उन्हें ले जाता.एक दिन शेफाली के घर स्कूल से आने के बाद जब सभी बच्चे खेल रहे थे तब एक ऐसी घटना घटी , जिसने शेखर को बहुत विचलित किया और उसने प्रिया और अंश से जुडी कुछ ऐसी बातें कहीं , जिन्हें जानने के बाद कहानी का चेहरा ही बदल जाता है.....
अभी तक शेफाली बस यह सोंचती रही की प्रिया सही थी या गलत पर शेखर की बातें सुनने के बाद वह यह सोंचने पर मजबूर हो जाती है की अंश ने जो प्रिया के साथ किया वह सही था या गलत. अमित और अभिषेक की भूमिका प्रिया के लिए सही थी या गलत और यहाँ तक की वह खुद अपने लिए सोचने पर मजबूर हो जाती है की उसने प्रिया के साथ दोस्ती निभाई या उसे एक खाई में धकेल दिया........................